For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौसम-ए-इश्क दबे पाँब चला जाता है

2122     /1122    /1122        /22

मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है

प्रेमी जोड़ों का सुकूँ चैन चुरा जाता है 

दिल की धड़कन को बढ़ा सीने में तूफ़ान छुपा

मौसम-ए-इश्क दबे पाँब चला जाता  है 

सर्द हो  रात  हो बरसात का मादक मंजर

मौसम-ए-इश्क  सदा सब को जला जाता है  

 

दर्द  ऐसा  भी है, अहसास सुखद है जिसका 
मौसम-ए-इश्क वो अहसास करा जाता  है


देख आँखों मे चमक गुल की यूँ  हैराँ मत हो
मौसम-ए-इश्क हसी नूर खिला जाता है

 

गैर अपनों से लगें अपने लगें गैरों से

मौसम-ए-इश्क तमाशा यूँ दिखा जाता है

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 918

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 9, 2013 at 10:31am

मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता हैहुस्न वालों  का भी ईमान  हिला जाता है सानी में ’भी’ क्यों है ?

आदरणीय सर ...सादर प्रणाम ...आपकी परखी नजरों से  इस बार "भी' बचनहीं पाया ..आपके द्वारा ":भी "को कटघरे में खड़ा करने पर मैं महसूस कर रहा हूँ की शब्द बात को कितना बदल देते है ..सर ईता दोष पर आपके द्वारा मार्गदर्शन के उपरान्त सतत ध्यान दिया ....फिर से देखता हूँ ...जगा और हिला   में कोई समस्या है क्या सर ...मैंने आ को बतौर काफिया लिया था ...फिर से पूरी ग़ज़ल देखूँगा .......हुश्न वालों का ये ईमान हिला जाता है ....यह सही रहेगा की नहीं ,..सर मुझसे जैसे ही कोई गलती हो आप हमेशा मुझे आगाह करते रहिएगा ..ताकी अगले रचना दोष मुक्त न हो तो कम से कम ,,,,,कम दोषों वाली ही  हो ...आपके स्नेह और सहयोग की सतत आकांक्षा के साथ ...सादर ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2013 at 8:53pm

मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है
हुस्न वालों  का भी ईमान  हिला जाता है
सानी में ’भी’ क्यों है ? क्या हुस्न वाले स्टोइक होते हैं ? उनके अरमान नहीं जगते ? क्या भाईसाहब ..!.. :-)))
क़ाफ़िये में इता दोष पर तनिक सचेत रहें, आदरणीय.

धड़कने दिल की बढ़ा सीने मे तूफॉ रखकर
मौसम-ए-इश्क दबे पाँब चला जाता  है
दोनों मिसरा में कोई राबिता बन पाया दिख रहा है क्या ? मुझे तो स्पष्ट नहीं हुआ.  

सर्द हो  रात  हो बरसात का मादक मंजर
मौसम-ए-इश्क  सदा सब को जला जाता है  
:-))))
वैसे इस शेर पर कुछ और समय देते तो बात और गहन हो जाती. बहरहाल दाद तो बनता है ..

दर्द  ऐसा  भी है, अहसास सुखद है जिसका
मौसम-ए-इश्क वो अहसास करा जाता  है
सही बात.. सही बात !

देख आँखों मे चमक गुल की यूँ हैरान न हो
मौसम-ए-इश्क हसी नूर खिला जाता है
क्या सानी के आखिरी रुक्न को २२ की जगह ११२ कर सकते हैं ? वैसे भी, तनाफ़ुर भयंकर है वहाँ. लोग-बाग़ इसे आजकल नज़रन्दाज़ भी करते हैं, लेकिन, ऐसे को नहीं.

गैर अपनों से लगें अपने लगें गैरों से
मौसम-ए-इश्क तमाशा यूँ दिखा जाता है
आह्हाह ! सही बात ! सही बात !! ..

बहुत दाद कुबूल करें, डॉक्टर साहब.. .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 2, 2013 at 1:48pm

आदरणीय निलेश जी ..आपकी बेहतरीन ग़ज़लों से सतत कुछ न कुछ सीखते हुए मैं भी प्रयास करता रहता हूँ..शिल्प की थोड़ी थोड़ी जानकारी अभी हो पाए है ..लेकिन अभी बहुत कुछ सीखना है ..आप सब बस यूं ही स्नेह देते रहे ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 2, 2013 at 1:46pm

अरुण जी ..आप मेरा निरंतर उत्साह वर्धन करते हैं ..मुहझे मेरी गलतियों से रूबरू करते हैं ..आपका ये सहयोग बस यूं ही मिलता रहे ..सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Meena Pathak on December 2, 2013 at 1:44pm

क्या बात है .. बहुत सुन्दर गज़ल हुई आदरणीय | बधाई कुबूल कीजिये 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 2, 2013 at 1:42pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ...आप का मार्गदर्शन मुझे सतत मिलता है ,..आप के शब्द मुझे फिर कुछ लिखने का हौसला देते हैं ..आपके स्नेहिल शब्दों के लिए तहे दिल बधाई ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 2, 2013 at 1:40pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी ..उत्साह वर्धन के लिए तहे दिल शुक्रिया ..सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 2, 2013 at 1:38pm

आदरणीय नादिर भाई ...बस यूं ही सतत स्नेह बनाये रखें ताकि मैं भी आप सभी के साथ कुछ न कुछ सतत सीखता रहूँ ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 2, 2013 at 1:37pm

आदरणीय डॉ गोपाल जी ..आपके उत्साहवर्धक स्नेहिल शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 2, 2013 at 1:36pm

संदीप जी ..आपके स्नेहिल शब्दों के लिए तहे दिल शुक्रिया सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
2 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
20 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
21 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service