For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह भीगा आँचल .... (विजय निकोर)

वह भीगा आँचल

 

 

धूप

कल नहीं तो परसों, शायद

फिर आ जाएगी

अलगनी पर लटक रहे कपड़ों की सारी

भीगी सलवटें भी शायद सूख ही जाएँगी

पर तुम्हारा भीगा आँचल

और तुम अकेले में ...

 

उफ़  ...

 

तुमने न सही कुछ न कहा

थरथराते मौन ने कहा तो था

यह बर्फ़ीला फ़ैसला

दर्दीला

तुम्हारा न था

फिर क्यूँ तुम्हारी सुबकती कसक

कबूल कर जाती है कसूर

लिख-लिख कर मेरी दहलीज़ पर कुछ ...

साँकल खटकाए बगैर

आँखों ओझल हो जाती है

 

कसूर ... तो मेरा था

 

स्नेह माँगता है

धैर्य

थोड़ा और इन्तज़ार

धीरे-धीरे ही सही

आत्मज सत्यों के सहारे

आशंकाओं की छायाओं को ठेलते

जीवन के करघे पर साँसो के सूत से

बुन रहा हूँ ...  बुन रहा हूँ

तुम्हारे लिए मैं स्नेह का आँचल

जड़ देता हूँ उस पर पल-पल  तुम्हारी

खिलखिलाती हँसी, शर्मीली मुस्कराहटें

चाँदनी भी शरमाई निखर उठती थी जिनसे

 

जाने किस रहस्यमय असंसारी अपेक्षित क्षण

तुम आओ ...  तुम लौट आओ

और तुम्हारे भीगे आँचल को ले

हृदय में रिस रहे स्नेह से मैं

तुम पर यह नया आँचल ओढ़ दूँ ...

 

                -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1001

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on December 18, 2013 at 7:51am

//आपकी रचना में भाव पूर्णत: ओस की बूँद की तरह पवित्र, सजीव  चित्रण किये हुए होते हैं, जिन्हें बार बार पढने से मन आनंदित होता है//

 

इस प्रकार मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 18, 2013 at 7:48am

/सुन्दर भावाभिव्यक्ति से सुसज्जित रचना/

 

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय उमेश जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 17, 2013 at 4:41pm

//कुछ भी कहने की कोशिश करना आपकी इस प्रस्तुति में निहित शबनम की बूँदों को छेड़ने के समान होगा//


आपने मुझको जो मान दिया है, कोशिश रहेगी कि मैं उस योग्य रह सकूँ। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शरदिंदु जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 17, 2013 at 4:36pm

//बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति//

रचना की सराहना के लिए आभारी हूँ, आदरणीय राम जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 17, 2013 at 4:33pm

//आपकी रचनाएँ तपती धूप में ठण्ठी छाँव, मरूस्थल में oisis और बर्फ़ीले मौसम में उष्णता का एहसास देते है.....//

आपके यह शब्द मेरे लिए अनमोल हैं... आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कुंती जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 16, 2013 at 10:49am

 

//इस खुबसूरत अभिव्यक्ति को प्रणाम //

 

आपका आशीर्वाद मिला, मन आल्हादित हुआ।

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 16, 2013 at 10:44am

 

//बहुत खूबसूरत भाव , अपने प्रिय के आँसुओं को पी जाने की उत्कट इच्छा !!! वाह//

 

आपके भावमय आशीर्वाद और उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 16, 2013 at 10:37am

//तुम पर यह नया आँचल ओढ़ दूँ ...क्या भाव हैं सर, बहुत उत्कृष्ट कविता //

 

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय राहुल जी।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 9:29am

बहुत सुन्दर सुकोमल कल्पना.

सादर बधाई 

Comment by Vindu Babu on December 13, 2013 at 5:36am

भावों की अनोखी छटा बिखेरी है आपने इस मुक्त विधा के माध्यम से आदरणीय।

आपकी अभिव्यक्ति प्रणम्य है।

इस सफल रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service