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ग़ज़ल :- तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है

तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है
ख़ुद अपना घर जलाकर हँस रहा है

बड़े लोगों की बातें भी बड़ी हैं
लगा,जैसे समन्दर हँस रहा है

सलीक़ा मन्द रो देते हैं जिस पर
तू ऐसी बात सुन कर हँस रहा है

बुराई का बुरा अंजाम होगा
फ़क़ीरों पर तुअंगर हँस रहा है

नहीं है ख़ुश कोई आबाद होकर
कोई बर्बाद होकर हँस रहा है

समझ लेना क़यामत आ गई है
अगर देखो,सुख़न्वर हँस रहा है

मिरी बर्बादियों पर ख़ुश है इतना
वो दिल पर हाथ रखकर हँस रहा है

विदाई हो गई बेटी की शायद
तभी मज़दूर खुलकर हँस रहा है

इसी दिन की दुआऐं माँगता था
मिरी क़ीमत लगाकर हँस रहा है

कभी "मारूफ़" को हँसता जो देखूँ
लगे,माह-ए-मुनव्वर हँस रहा है

"समर",ग़ैरत दिलाओ फ़ौजियों को
उधर दुश्मन का लश्कर हँस रहा है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on April 10, 2015 at 2:31pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by दिनेश कुमार on April 9, 2015 at 7:12pm
बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय समर कबीर सर जी। हर अशआर के लिए ढेरों दाद व बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद क़ुबूल करें सर।
Comment by Samar kabeer on April 9, 2015 at 10:08am
जनाब डा.आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,ज़र्रा नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 8, 2015 at 5:57pm

आदरणीय समर जी ..इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Samar kabeer on April 8, 2015 at 5:50pm
मोहतरमा निधी अग्रवाल जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 8, 2015 at 5:49pm
जनाब नज़ील जी,आदाब,ज़र्रा नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 8, 2015 at 5:44pm
जनाब निर्मल नदीम जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत से लिखना सार्थक हुआ,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Nidhi Agrawal on April 8, 2015 at 5:03pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई सर .. बह्र लिख देने से हम नए लोगों को सुविधा हो जाती है 

विदाई हो गई बेटी की शायद
तभी मज़दूर खुलकर हँस रहा है ०- वाह 

Comment by Nazeel on April 8, 2015 at 3:10pm

आदरणीय  समर कबीर जी  बेहद खूबसूरत रचना के लिए  हार्दिक  बधाई

Comment by Nirmal Nadeem on April 8, 2015 at 1:21pm
आदाब जनाब। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है। ढेरों दाद ओ तहसीन पेश करते हुए मुबारकबाद देता हूँ। अल्लाह सलामत रखे। आमीन।

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