दोस्तो गर ज़िन्दगी में कामरानी चाहिए
ज़ह्न-ओ-दिल से गर्द नफ़रत की हटानी चाहिए
अर्ज़ कर दूँ आख़िरी ख़्वाहिश इजाज़त हो अगर
एक शब मुझको तुम्हारी मेज़बानी चाहिए
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी अगर कुछ आपसे बच पाए तो
हम ग़रीबों को भी थोड़ी शादमानी चाहिए
मूँद कर आँखें न चलना याद रखना ये सबक़
ज़िन्दगी में हर क़दम पर सावधानी चाहिए
ज़िन्दगी में लाज़मी तो है मगर इंसान को
दफ़्न करने के लिये भी माल पानी चाहिए
फ़ज़्ल से रब के मुकम्मल हो गई मेरी ग़ज़ल
दोस्तो…
Added by Samar kabeer on November 9, 2020 at 5:30pm — 22 Comments
2122 2122 212
.
देख साँसों में बसा है ओ बी ओ
मेरी क़िस्मत में लिखा है ओ बी ओ
कितने आए और कितने ही गए
शान से अब तक खड़ा है ओ बी ओ
बढ़ गई तौक़ीर मेरी और भी
तू मुझे जब से मिला है ओ बी ओ
हों वो 'बाग़ी' या कि भाई 'योगराज'
तू सभी का लाडला है ओ बी ओ
भाई 'सौरभ' शान से कहते…
Added by Samar kabeer on April 1, 2020 at 9:00pm — 19 Comments
7 फेलुन 1 फ़ा
मेरी यादों से वो यारो जब भी घबराते हों गे
माज़ी के क़िस्सों से अपने दिल को बहलाते हों गे
काले बादल शर्म से पानी पानी हो जाते हों गे
बाम प आकर जब वो अपनी ज़ुल्फ़ें लहराते हों गे
जैसे हमको यार हमारे समझाने आ जाते हैं
उसके भी अहबाब यक़ीनन उसको समझाते हों गे
हम तो उनके हिज्र में तारे गिनते रहते हैं शब भर
वो तो अपने शीश महल में चैन से सो जाते हों…
ContinueAdded by Samar kabeer on February 13, 2020 at 5:55pm — 6 Comments
2122 1212 112/22
जिस्म में पहले जान फूँकता है
बाद-अज़-जाँ अज़ान फूँकता है
सब्र कर शब गुज़र ही जाएगी
क्यों ये अपना मकान फूँकता है
अपनी नफ़रत की आग से कोई
देखो हिंदौस्तान फूँकता है
पास आकर वो गर्म साँसों से
मेरे दिल का जहान फूँकता है
आग तो सर्द हो चुकी कब की
क्यों अबस राखदान फूँकता है
हुक्म से रब के ल'अल मरयम का
देखो मुर्दे में जान फूँकता है
रोज़ आयात पढ़…
ContinueAdded by Samar kabeer on August 6, 2019 at 3:00pm — 18 Comments
अरकान:-12112 12112
न छाँव कहीं,न कोई शजर
बहुत है कठिन,वफ़ा की डगर
अजीब रहा, नसीब मेरा
रुका न कभी,ग़मों का सफ़र
तलाश किया, जहाँ में बहुत
कहीं न मिला, वफ़ा का गुहर
तमाम हुआ, फ़सान: मेरा
अँधेरा छटा, हुई जो सहर
ग़मों के सभी, असीर यहाँ
किसी को नहीं, किसी की ख़बर
बहुत ये हमें, मलाल रहा
न सीख सके, ग़ज़ल का हुनर
हबीब अगर, क़रीब न हो
अज़ाब लगे, हयात…
ContinueAdded by Samar kabeer on July 4, 2019 at 2:30pm — 36 Comments
है उजागर ये हक़ीक़त ओ बी ओ
मुझको है तुझसे महब्बत ओ बी ओ
तेरे आयोजन सभी हैं बेमिसाल
तू अदब की एक जन्नत ओ बी ओ
कहते हैं अक्सर ,ये भाई योगराज
तू है इक छोटा सा भारत ओ बी ओ
सीखने वाले यही कहते सदा…
ContinueAdded by Samar kabeer on April 1, 2019 at 11:00am — 42 Comments
मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़अल
221 1221 1221 12
पाना जो शिखर हो तो मेरे साथ चलो
ये अज़्म अगर हो तो मेरे साथ चलो
दीवार के उस पार भी जो देख सके
वो तेज़ नज़र हो तो मेरे साथ चलो
होती है ग़रीबों की वहाँ दाद रसी
तुम ख़ाक बसर हो तो मेरे साथ चलो
पत्थर पे खिलाना है वहाँ हमको कँवल
आता ये हुनर हो तो मेरे साथ चलो
हर शख़्स वहाँ कड़वा…
ContinueAdded by Samar kabeer on March 6, 2019 at 5:55pm — 25 Comments
मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
ग़ज़ल
उठा है ज़ह्न में सबके सवाल,किसकी है
तू जिस पे नाच रहा है वो ताल किसकी है
खड़े हुए हैं सर-ए-राह आइना लेकर
हमारे सामने आए मजाल किसकी है
ज़रा सा ग़ौर करोगे तो जान जाओगे
वतन को आग लगाने की चाल किसकी है
हमें तू बेवफ़ा कहता है ,ये तो देख ज़रा
लबों पे सबके वफ़ा की मिसाल किसकी…
ContinueAdded by Samar kabeer on January 16, 2019 at 8:30pm — 20 Comments
नोट:-
तरही मुशायरा अंक-100 में 87 ग़ज़लें पोस्ट हुईं,मेरी इस ग़ज़ल में जो क़वाफ़ी इस्तेमाल हुए हैं वो बिल्कुल नये हैं ।
पहले सिल पर घिसा गया है मुझे
फिर जबीं पर मला गया है मुझे
जाल हूँ इक सियासी लीडर का
नफ़रतों से बुना गया है मुझे
कोई बारूद की तरह देखो
सरहदों पर बिछा गया है मुझे
कहदो तक़दीर से बखेरे नहीं
करके वो एक जा गया है…
ContinueAdded by Samar kabeer on October 24, 2018 at 5:54pm — 48 Comments
कितनी प्यारी ये मनभावन हिन्दी है
भारत की वैचारिक धड़कन हिन्दी है
जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ
मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है
रफ़ी, लता,मन्नाडे को तुम सुन लेना
इन सबकी भाषा और गायन हिन्दी है
भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन
सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है
पहले मैं अक्सर उर्दू में लिखता था
अब तो मेरा सारा लेखन हिन्दी है
मुझको तो लगती है ये भाषा…
ContinueAdded by Samar kabeer on September 13, 2018 at 11:39pm — 33 Comments
ग़ज़ल
बहुत दिनों से है बाक़ी ये काम करता चलूँ
मैं नफ़रतों का ही क़िस्सा तमाम करता चलूँ
अब आख़िरत का भी कुछ इन्तिज़ाम करता चलूँ
दिल-ओ-ज़मीर को अपने मैं राम करता चलूँ
जहाँ जहाँ से भी गुज़रूँ ये दिल कहे मेरा
तेरा ही ज़िक्र फ़क़त सुब्ह-ओ-शाम करता चलूँ
अमीर हो कि वो मुफ़लिस,बड़ा हो या छोटा
मिले जो राह में उसको सलाम करता चलूँ
गुज़रता है जो परेशान मुझको करता है
तेरे ख़याल से…
ContinueAdded by Samar kabeer on September 1, 2018 at 3:12pm — 54 Comments
मैं तो उसकी पे ब पे अंगड़ाइयाँ गिनता रहा
और वो दामन की मेरे धज्जियाँ गिनता रहा
सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा
मेरे सीने पर सितम की मश्क़ वो करते रहे
और मैं मासूम दिल की किर्चियाँ गिनता रहा
काम जब कुछ भी नहीं था ओबीओ पर दोस्तो
'नूर' साहिब की मैं कूड़ेदानियाँ गिनता रहा
मेरी बर्बादी पे ख़ुश होकर अज़ीज़ों ने "समर"
कितनी…
ContinueAdded by Samar kabeer on July 11, 2018 at 10:00am — 31 Comments
(चौथे शैर में तक़ाबल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ करे)
नसीहत जो बुज़ुर्गों की न मानी याद आएगी
हमें ता उम्र उनकी सरगरानी याद आएगी
मियाँ मश्क़-ए-सुख़न कर लो नहीं ये खेल बच्चों का
ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी
ज़माने भर की आसाइश के जब सामाँ बहम होंगे
तुझे माँ-बाप की क्या जाँ फ़िशानी याद आएगी
जुड़ी होंगी मज़ालिम की बहुत सी दास्तानें भी
हवेली गाँव की जब ख़ानदानी याद…
ContinueAdded by Samar kabeer on May 7, 2018 at 12:00pm — 34 Comments
ज़िन्दगी में जो हुआ सूद-ओ-ज़ियाँ गिनता रहा
बैठ कर मैं आज सब नाक़ामियाँ गिनता रहा
बाग़बाँ को और कोई काम गुलशन में न था
फूल पर मंडराने वाली तितलियाँ गिनता रहा
और क्या करता बताओ इन्तिज़ार-ए-यार में
तैरती तालाब में मुर्ग़ाबियाँ गिनता रहा
रोकता कैसे मैं उनको नातवानी थी बहुत
बे अदब लोगों की बस गुस्ताख़ियाँ गिनता रहा
लोग भूके मर रहे थे और यारो उस…
ContinueAdded by Samar kabeer on May 1, 2018 at 10:49am — 19 Comments
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन/फ़इलुन
इसलिये आने से कतराते हैं ईमाँ वाले
तेरे कूचे में उधम करते हैं शैताँ वाले
.
ये किसी ख़तरे की आमद का इशारा तो नहीं
ख़्वाब क्यों मुझको दिखाता है वो तूफ़ाँ वाले
.
और सब कुछ यहाँ तब्दील हुआ है लेकिन
घर में दस्तूर हैं अब तक वही अम्माँ वाले
.
बाग़बाँ ने वो सितम तोड़े हैं इनपर देखो
कितने सहमे हुए रहते हैं गुलिस्ताँ वाले
.
रह्म करना किसी बिस्मिल पे गवारा ही…
ContinueAdded by Samar kabeer on April 6, 2018 at 3:00pm — 27 Comments
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
मेरी सारी वफ़ा ओबीओ के लिये
काम करता सदा ओबीओ के लिये
दिल यही चाहता है मेरा दोस्तो
जान करदूँ फ़िदा ओबीओ के लिये
आठ क्या,आठ सो साल क़ाइम रहे
है यही इक दुआ ओबीओ के लिये
मेरे दिल में कई साल से दोस्तो
जल रहा इक दिया ओबीओ के लिये…
Added by Samar kabeer on April 2, 2018 at 3:00pm — 40 Comments
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन
लोग हैरान थे,रिश्ता सर-ए-महफ़िल बाँधा
उसने जब अपनी रग-ए-जाँ से मेरा दिल बाँधा
हर क़दम राह मलाइक ने दिखाई मुझ को
मैंने जब अज़्म-ए-सफ़र जानिब-ए-मंज़िल बाँधा
जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो
अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा
जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो
अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा
शुक्र तेरा करें किस मुंह से…
ContinueAdded by Samar kabeer on March 27, 2018 at 12:31pm — 35 Comments
मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुम
सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था
ख़्वाबों में मेरे आपको आना ही नहीं था
बाग़ी है अगर तुझ से तो अब कैसी शिकायत
औलाद का हक़ तुझको दबाना ही नहीं था
वो होके पशेमान यही बोल रहे हैं
मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था
सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे
सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं था
बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे
फिर तुमको यहाँ शोर…
ContinueAdded by Samar kabeer on March 19, 2018 at 2:00pm — 37 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
(हुस्न-ए-मतला और उसके बाद का शे'र क़ित'अ बन्द हैं)
जब इम्तिहान-ए-शौक़-ए- शहादत रखा गया
इनआम उसका दोस्तो जन्नत रखा गया
पहले तो इसमें नूर-ए-सदाक़त रखा गया
फिर इसके बाद जज़्ब-ए- उल्फ़त रखा गया
तकलीफ़ दूसरों की समझ पाएँ इसलिये
दिल में हमारे दर्द-ए-महब्बत रखा गया
कोई भी शय फ़ुज़ूल नहीं इस जहान में
हर एक शय को हस्ब-ए-ज़रूरत रखा गया
लेता नहीं है रोज़ वो आमाल…
ContinueAdded by Samar kabeer on February 25, 2018 at 2:32pm — 23 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
ख़ुशियों का इस जहाँ में फ़ुक़दान हो न जाये
ग़म अपनी ज़िन्दगी का उन्वान हो न जाये
नफ़रत का आज कंकर जो तेरी आँख में है
इक रोज़ बढ़ते बढ़ते चट्टान हो न जाये
मज़लूम की कहानी सुनकर तू हँस रहा है
तेरा भी हाल ऐसा नादान हो न जाये
सारे अदू लगे हैं,यारो इसी जतन में
पूरा हमारे दिल का अरमान हो न जाये
दोनों तरफ़ की फ़ौजें होने लगीं…
ContinueAdded by Samar kabeer on February 20, 2018 at 5:55pm — 17 Comments
2020
2019
2018
2017
2016
2015
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2021 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |