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अब तक भरी हुई थी जो तेरे दिमाग़ में
फैलाई है वो तूने ग़िलाज़त कहाँ कहाँ
तूने वतन को बेचा है अपने मफ़ाद में
होती है देखें तेरी मज़म्मत कहाँ कहाँ
फ़हरिस्त इसकी अब तो बताना फ़ुज़ूल है
हमने उठाई है ये हज़ीमत कहाँ कहाँ
बहुत खूब आदरणीय समर भाई जी | उम्दा ग़ज़ल हुई है , बहुत बहुत मुबारकबाद | सादर |
आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद.
सादर
खूदसूरत ! इतनी खूबसूरत गज़ल ! हर एक शेर मानों हाथ पकड़ कर रोक लेता है, और हर शेर पर दिल कहता है, "वाह" । आपके कारण ओ बी ओ मंच अच्छी गज़लों से बहुत अमीर है, भाई समर कबीर जी।
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