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आदरणीय समर कबीर साहब आदाब, सबसे पहले तो आपको तकलीफ देने के लिए माफ़ी चाहता हूँ . लेकिन सवाल ऐसा था कि आप जैसे उस्ताद के सामने ही रखा जा सकता था. बहुत कम लोग अब ऐसे बचे है जो अरूज की गहरी जानकारी रखते हैं. बात को आपने जिस तरह साफ़ किया है वह आप जैसे उस्ताद के कद का ही हिस्सा हैं. मैं तहे दिल से आप का शुक्रगुज़ार हूँ.
उर्दू और फ़ारसी अभी सीखने कि कोशिश कर रहा हूँ. बमुश्किल पढ़ लेता हूँ.
सादर
आदरणीय समर कबीर साहब आदाब, यास यगाना चंगेजी की किताब 'चिरागे सुखन' संयोगवश archive.org पर डाउनलोड के लिए मिल गयी :
http://https://archive.org/download/CharaaghESukhanRisalaEUroozOQav...
इस किताब में बहरे खफिफ की मुजाहिफ शक्ल 'फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ाइलातुन' का जिक्र है :
तो क्या 'फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ाइलातुन' पर लिखी गयी ग़ज़ल बहर के लिहाज़ से ठीक मानी जायेगी?
सादर
//चींटियाँ सी बदन पे रेंगती हैं
लम्स में तेरे चाशनी है बहुत//.......
वाह ! सोचता हूँ, इतने अच्छे ख्याल ! तभी तो बार-बार पढ़ने को मन करता है। दिल से मुबारकबाद, भाई समर जी।
आदरणीय समर कबीर साहब मेरे एक मित्र ने कहा था कि यास यगाना चंगेजी की किताब 'चरागे सुखन' में में इस का ज़िक्र है. ये किताब मेरे पास नहीं है इसलिए आपको तकलीफ देनी पड़ी. स्पष्टीकरण के लिए शुक्रिया.
सादर
आदरणीय समर कबीर साहब आदाब,ये प्रश्न मैंने अपनी जानकारी के लिए पूछा था मेरा मतलब ये था कि बहर खफिफ की कोई मुजाहिफ शक्ल 'फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ाइलातुन'भी होती है क्या?
आदरणीय समर कबीर साहब आदाब, ग़ज़ल का हर शेर दाद के काबिल है, बहुत बहुत मुबारकबाद. इस बहर (खफिफ) में 'फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ाइलातुन' ये अरकान भी होते हैं क्या ?
सादर
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