For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'अदब की मुल्क में मिट्टी पलीद कैसे हो'

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२


ख़ुलूस-ओ-प्यार की उनसे उमीद कैसे हो
जो चाहते हैं कि नफ़रत शदीद कैसे हो

छुपा रखे हैं कई राज़ तुमने सीने में
तुम्हारे क़ल्ब की हासिल कलीद् कैसे हो

बुझे बुझे से दरीचे हैं ख़ुश्क आँखों के
शराब इश्क़ की इनसे कशीद् कैसे हो

हमेशा घेर कर कुछ लोग बैठे रहते हैं
अदब पे आपसे गुफ़्त-ओ-शुनीद कैसे हो

इसी जतन में लगे हैं हज़ारहा शाइर
अदब की मुल्क में मिट्टी पलीद कैसे हो
----
शदीद-सख़्त
क़ल्ब-दिल
कलीद्-चाबी
कशीद्-खींचना
गुफ़्त-ओ-शुनीद-बात चीत
पलीद-गन्दा,ग़लीज़
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1592

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on October 8, 2017 at 10:08am
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,आपकी ख़्वाहिश का एहतिराम करता हूँ,कोशिश ज़रूर करूँगा ।
Comment by Samar kabeer on October 8, 2017 at 10:04am
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by vijay nikore on October 8, 2017 at 12:43am

//उर्दू के हिसाब से सही व्याकरण 'घेर कर'ही होता है//

यह जानकारी बहुत ही अच्छी लगी। ऐसी ही अन्य जानकारी पर अगर आप कुछ लेख हिन्दी लिपि में लिख सकें तो ्बहुत ही अभार होगा।

सादर।

Comment by राज़ नवादवी on October 7, 2017 at 11:18pm

आदरणीय समर कबीर साहब, बहुत ही शानदार ग़ज़ल कहने के लिए ढेरों सारी बधाइयां ! एक एक शेर सवा शेर से कम नहीं. मज़ा आ गया पढ़कर. सादर! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 7, 2017 at 11:00pm

आपसे मिली जानकारी के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर साहब 

शुभ-शुभ

Comment by Samar kabeer on October 7, 2017 at 10:52pm
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,उर्दू के हिसाब से सही व्याकरण 'घेर कर'ही होता है,और रही गिराने की बात तो 'र'भी हर्फ़-ए-इल्लत के तौर पर गिराया जा सकता है,वैसे मिसरे की रवानी के लिहाज़ से 'के'भला मालूम होता है,इसे तस्लीम करता हूँ,ग़ज़ल की तारीफ़ के लिये शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 7, 2017 at 10:35pm

//कर'भी 2 है और 'के'भी,लेकिन 'घेर कर'यहाँ बहतर है //

आदरणीय समर भाई, डॉक्टर साहब का सवाल वाज़िब है. ’कर’ की जगह, मुझे भी लगता है, ’के’ ही उचित होगा. ’के’ को गिराया जा सकता है, जिसकी यहाँ आवश्यकता है. देखिएगा और शंका निवारण कीजिएगा.

वैसे आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दोबारा आना मुझे बड़ा भला लगा है. 

Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 5:32pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
'कर'भी 2 है और 'के'भी,लेकिन 'घेर कर'यहाँ बहतर है ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2017 at 3:48pm

आदरणीय समर सर आपकी हर रचना से सीखते है हम सब बड़ी विनम्रता के साथ अपने एक संशय का निवारण चाहता हूँ

बस अपनी समझ को पुख्ता करने के  लिए   इस मिसरे में ... हमेशा घेर कर कुछ लोग बैठे रहते हैं.....घेर कर ..कर जहाँ है वहां मैं बह्र के हिसाब से दुबिधा में हूँ ..आदरणीय सर आप मेरी बात को अन्यथा मत लीजियेगा . सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 8:57pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
13 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service