है उजागर ये हक़ीक़त ओ बी ओ
मुझको है तुझसे महब्बत ओ बी ओ
तेरे आयोजन सभी हैं बेमिसाल
तू अदब की एक जन्नत ओ बी ओ
कहते हैं अक्सर ,ये भाई योगराज
तू है इक छोटा सा भारत ओ बी ओ
सीखने वाले यही कहते सदा
तू करे बे लौस ख़िदमत ओ बी ओ
सबके दिल में बन गया है घर तेरा
सबके दिल में तेरी चाहत ओ बी ओ
मैं हूँ दीवाना तेरा सब जानते
तू मेरे दिल की है राहत ओ बी ओ
जुड़ गया है जो भी दामन से तेरे
दिल से करता है वो इज़्ज़त ओ बी ओ
चाहने वाले हज़ारों हैं तेरे
है ये तेरी क़द्र-ओ-क़ीमत ओ बी ओ
दिल से निकली है "समर" के ये दुआ
तू रहे सदियों सलामत ओ बी ओ
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा जी आदाब,आप दुरुस्त कहते हैं ।
ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ ।
//आज बहत दिनों बाद इस मंच पर आना हुआ//
शायद इसीलिए आप मेरा नाम भी भूल गए, मेरा नाम 'समीर' नहीं 'समर' है:-)))
परम आदरणीय समीर सर बहुत ही उत्कृष्ट रचना है / हम सबके जीवन में इस मंच का बिशेस महत्व है/ आज बहत दिनों बाद इस मंच पर आना हुआ / इस रचना के लिए आपको तहे दिल बधाई सादर प्रणाम के साथ
बहुत शुक्रिय: निशा जी ।
बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे सर
ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत धन्यवाद ।
बहुत ख़ूब, जनाब राम आश्रय जी,शुक्रिय:
बहुत बहुत मुबारकबाद बहुत उम्दा ग़ज़ल ओ बी ओ
प्यार और दुआ में ताकत है वह गज़ब की
बहे जिस दिशा में मिटा दे गर्दिश वहाँ की
ओ बी ओ की सफलता है संपादक मण्डल की
शत्रु को मित्र में बदल दे ख्वाहिस समीर की ॥
मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
बहुत ही सुन्दर तोहफा ओ बी ओ के लिए , बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे सर
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