7 फेलुन 1 फ़ा
मेरी यादों से वो यारो जब भी घबराते हों गे
माज़ी के क़िस्सों से अपने दिल को बहलाते हों गे
काले बादल शर्म से पानी पानी हो जाते हों गे
बाम प आकर जब वो अपनी ज़ुल्फ़ें लहराते हों गे
जैसे हमको यार हमारे समझाने आ जाते हैं
उसके भी अहबाब यक़ीनन उसको समझाते हों गे
हम तो उनके हिज्र में तारे गिनते रहते हैं शब भर
वो तो अपने शीश महल में चैन से सो जाते हों गे
सुब्ह चमन की सैर को जब भी यार निकलते होंगे वो
उनके कदमों में तो ख़ुद ही फूल बिखर जाते हों गे
बाद अज़ तर्क-ए-तअल्लुक़ उनको जब अहसास हुआ होगा
वो भी कुढ़ते होंगे दिल में वो भी पछताते हों गे
शाम ढले परदेस में हम ये बैठ के सोचा करते हैं
यार हमारे महफ़िल में अब साग़र टकराते हों गे
'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार।सर् , मेरे लिए जो बह्र सबसे मुश्किल है उस पर ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही आपने। सब अश्आर एक से बढ़कर एक वाह वाह वाह।
हार्दिक बधाई सर्
जय हो, जय हो..
:-))))
//कुछ बीती कुछ सोच समझ से बातें तो कह बैठे हैं
लेकिन सच है कहीं समर मन ही मन झुँझलाते होंगे //
अपनी बीती साझा करने का इक मक़सद ये भी था
भाई सौरभ मेरे मन को बहलाने आते होंगे:-))))
जनाब सौरभ भाई आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत धन्यवाद ।
कुछ बीती कुछ सोच समझ से बातें तो कह बैठे हैं
लेकिन सच है कहीं समर मन ही मन झुँझलाते होंगे
अच्छी कहन से गजल समृद्ध हुई है, आदरणीय समर साहब.
दाद दाद दाद
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
जनाब निलेश 'नूर' जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
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