फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
कहूँ,ओबीओ से में क्या चाहता हूँ
ग़ज़ल की सुहानी फ़ज़ा चाहता हूँ
यही आरज़ू लेके आया हूँ यारो
मैं इस मंच को लूटना चाहता हूँ
ये समझो मुझे कुछ भी आता नहीं है
मैं सब कुछ यहाँ सीखना चाहता हूँ
जुड़े भाई'मिथिलेश' ही सब से पहले
मैं उनसे ग़ज़ल की अदा चाहता हूँ
ये'गिरिराज' तो मेरे हम अस्र ठहरे
मैं उनसे भी लेना दुआ चाहता हूँ
बहुत कुछ मुझे उनसे करना है साझा
मैं 'सौरभ' से इक दिन मिला चाहता हूँ
लिसानी हों या हों निकात-ए-अरूज़ी
मैं 'वीनस' से चर्चा किया चाहता हूँ
ज़हानत मुझे 'नूर' की भा गई है
मैं साथ उनसे अपना सदा चाहता हूँ
बहुत है महब्बत मुझे ओबीओ से
यही 'बाग़ी' जी से कहा चाहता हूँ
मुलायम है लहजा बहुत 'योग' जी का
मैं उनसे ज़रा हौसला चाहता हूँ
खुले दिल के हैं भाई 'राणा' यक़ीनन
ख़ुदा से मैं उनका भला चाहता हूँ
है बारीक बीं मेरी 'राजेश' बहना
मैं उनकी नज़र माँगना चाहता हूँ
उमीदें बहुत हैं मुझे 'शिज्जु' जी से
मैं ऊँचा उन्हें देखना चाहता हूँ
'दिनेश' अपने मतलब से रखते हैं मतलब
मैं तारीफ़ उनकी किया चाहता हूँ
बना लूँ तुम्हें 'जान' जी ,जान अपनी
इजाज़त तुम्हारी ज़रा चाहता हूँ
'विजय' जी हों या मेरे 'गोपाल' दादा
मैं दोनों से अह्द-ए-वफ़ा चाहता हूँ
'लडीवाला' जी तो ये ख़ुद कह चुके हैं
"बदलना समय को ज़रा चाहता हूँ"
दुबे जी 'मुसाफ़िर'जी ,'सेठी' जी आओ
सितारों से आगे बढ़ा चाहता हूँ
मिरे पास ग़ज़लों का है इक ख़ज़ाना
उसी को यहाँ बाँटना चाहता हूँ
महब्बत महब्बत महब्बत महब्बत
मैं तुमसे भला और क्या चाहता हूँ
अगर कोई गाहक मिले तो बताना
"समर" को मैं अब बेचना चाहता हूँ
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
ओबीओ के प्रति अपने प्यार का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है आपने आदरणीय समर कबीर जी , हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ आपको इस ग़ज़ल पर ... सादर
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब , हर लफ्ज़ आपकी तारीफ़ की रोशनी के आगे जुगनू साबित होता है। इस मोहब्बत से लबरेज़ ग़ज़ल की महक ने हर आम-ओ-ख़ास को अपनी जद में ले लिया है। ओ बी ओ मंच और उसका हर सदस्य आपको और आप हर सदस्य को दिलोजान से चाहते हैं , ये इस ग़ज़ल के माध्यम से आपने बता दिया। इस बेहतरीन ग़ज़ल और प्यार के लिए दिल से मुबारक। ४ लाइनें आपकी नज़्र हैं :
खबर है हमें आप क्या चाहते हैं
हर बशर का बस भला चाहते हैं
लूटा मोहब्बत ने आपकी सभी को
हम भी दुआ आपकी लूटना चाहते हैं
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