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जनाब अनीस शैख़ साहिब आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ
हाथों में क्यूँ लरज़िश होने लगती है
वाह्ह्ह्ह बेहतरीन सर क्या ग़ज़ल है क्या लय है हर शेर स्कूल कि एक एक कक्षा कि तरह है जिसमें कुछ नया सीखते हैं ,गूँगा भी गुनगुनाने लग जाये इस ग़ज़ल में क्या कवाफ़ी है समंदर से मोती चुन के लाये हैं आप और उसे गूथकर इस पटल पर मुझ जैसे नौसिखिए के लिए सजा कर रख दिए हैं आने वाले दिनों में न जाने कितने लोग इस ग़ज़ल में डूबकर इसका मज़ा लेंगे और सीखेंगे, बहुत बहुत मुबारकबाद सर
सादर धन्यवाद आदरणीय भाई जी | मुझे लग तो रही थे २२ २२ २२ २२ २२ २ है , पर कंफ्यूज हो रही थी | पुनः धन्यवाद आपका भाई जी |
आँखों में जब सोज़िश होने लगती है
रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है
बाबू जी का साया सर से उठते ही
धरती की पैमाइश होने लगती है बहुत खूब भाई जी | जी भाई जी क्षमा चाहूंगी |
आदरणीय भाई जी फ़ेलुन की गिनती क्या २२ होती है ? यह जो ग़ज़ल आपने लिखी है उसकी गिनती क्या २२१ है ?
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