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एक ग़ज़ल - सुलभ अग्निहोत्री

सुरभि की छाँव में आकर हुआ दरपन सहज कायल
तुम्हारा रूप बादल सा इबादत की तरह निर्मल

नहाकर ओस से निकली प्रकृति की नायिका तड़के
उषा की बाँह फैलाये विमोहित रवि हुआ चंचल

न दो व्यवधान अलियों को उन्हें करने निवेदन दो
सुवासित प्रीति का उपवन, समर्पण के खिले शतदल

समूचा सींच डाला मन, बदन, अस्तित्व रिमझिम ने
तुम्हारी याद सावन सी बरसती हर घड़ी, हर पल

नदी की धार पर लिक्खा किसी ने गीत प्राणों का
बहा जब मन तरल होकर, लहर भी हो उठी विव्हल

नज़र की अंजुरियाँ भर-भर के अक्षय कोष लूटा है
बहारों बाँट दूँ हिस्सा, बिछाओ तो जरा आंचल

निगाहों ने लिखे मधुमास, इतराने लगा मौसम
समीरण ने पढ़ी पाती, हवा ने बाँध ली पायल


मौलिक एवं अप्रकाशित

-------- सुलभ अग्निहोत्री

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Comment

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Comment by Sulabh Agnihotri on August 4, 2015 at 3:45pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी। आप लोगों का प्रोत्साहन ही सामथ्र्य देता है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2015 at 2:35pm

आदरनीय सुलभ भाई , बेमिसाल गज़ल कही है , सभी अशार बाकमाल कहे हैं , हार्दि बधाइयाँ आपको ।

आदरणीय --  ऊषा  या उषा ? ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 4, 2015 at 2:06pm

आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री जी आपने बह्र-ए-हजज़ में शानदार ग़ज़ल कही है. मतला बेहतरीन हुआ है. इस ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है. ये अशआर बहुत पसंद आये, इन पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं-

समूचा सींच डाला मन, बदन, अस्तित्व रिमझिम ने
तुम्हारी याद सावन सी बरसती हर घड़ी, हर पल................. बहुत सुन्दर 

नदी की धार पर लिक्खा किसी ने गीत प्राणों का
बहा जब मन तरल होकर, लहर भी हो उठी विव्हल.............. वाह वाह 

नज़र की अंजुरियाँ भर-भर के अक्षय कोष लूटा है
बहारों बाँट दूँ हिस्सा, बिछाओ तो जरा आंचल............... बहुत खूब ... उम्दा शेर 

इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

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