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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७९

२२१२ २२१२ २२१२ १२

जब से मैं अपने दिल का सूबेदार हो गया
सहरा भी मेरे डर से लालाज़ार हो गया //१

छोड़ा जो तूने साथ, ख़ुद मुख्तार हो गया
तू क्या, ज़माना मेरा ख़िदमतगार हो गया //२

आईन मेरा ग़ैर क्या बतलायेंगे मुझे
मैं ख़ुद ही अपना आइना बरदार हो गया //३

गर बेमज़ा है आशिक़ी मेरे हवाले से
तू क्यों फ़साने में मेरे किरदार हो गया //४

मजनूँ बना मैं इश्क़ में, आँसू की क्या बिसात
जोशे जुनूँ में चश्म से खूँबार हो गया //५

लुत्फ़े हुबाबे इश्क़ की हस्ती न थी दराज़ //६
पैदा हुआ वो जिस घड़ी मिस्मार हो गया

साया ख़ुद अपने यास का आया हमारे काम
तीरा-ए-ग़म में ज़ानू-ए-ग़मख़्वार हो गया //७

दिल मुहलते फ़िराक़ में सोज़ाँ था हर घड़ी
यूँ इश्क़ मेरा आतिशे फ़िन्नार हो गया //८

जब तक जहाँ था क़ल्ब में कुछ ना दिखा मुझे
देखा शिफ़र तो ख़ल्क़ का दीदार हो गया //९

उस माहरू का 'राज़' मैं कैसे करूँ इलाज
तीमारदारी में मैं ख़ुद बीमार हो गया //१०

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

सूबेदार- सूबे का शासक; लालाज़ार- लाल फूलों का खेत; आईन- नियम, क़ानून; आइना बरदार- आइना ढोने वाला; खूँबार- खून बरसाने वाला; मिस्मार- ध्वस्त; तीरा-ए-ग़म- ग़म का अन्धकार; लुत्फ़े हुबाबे इश्क़- प्रेम के बुलबुले का आनंद; जानू-ए-ग़मख़्वार- ग़म में सांत्वना देनेवाला का घुटना; फ़िन्नार- नरक, पर्गेटरी;

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Comment by TEJ VEER SINGH on December 7, 2018 at 10:53am

हार्दिक बधाई आदरणीय राज नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।

उस माहरू का 'राज़' मैं कैसे करूँ इलाज 
तीमारदारी में मैं ख़ुद बीमार हो गया //१० 

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