इश्क के मजार पर
पाकीजा रुह का दीया रखते वक्त
जैसे ही उसने चुन्नी से सिर ढांका
लौ थर्रा कर बोली
उसके साथ ही उसका
दीन और ईमान भी वापस लौट गया
उसके साथ ही
ख्वाब और खुलूस भी खो गया
वह आंखे बन्द कर मुस्कुराई
वह था .. अभी भी था
यकीनन था
कई हजार प्रकाश वर्ष दूर
प्रकाश जिस सीधी रेखा से
होकर गुजरती है
वही शायद
उसकी हथेलियों मे नही था ......... ग़ुल सारिका
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया आपका आभार कि आपने मेरे कहे को मान दिया।
Bahut bahut abhar aap sabhee kaa.... Brijesh jee.. Barahkhadee .. kakahra ko kahaa jata hai ... jaise ..k ka ke kee koo ku ... ityadi .. yh shrinkhala hai meri rachnaon kee .... mera manna hai ki meri rachnayen jeevan kee barahkhadee hee hai ... rahee baat abhee bhee ki to yh hm prayah prahukt krte hain .. amuk cheez abhee bhee bhai ... vaise vyakaran kee drishti se aap sahee kah rahe hain .. mai iska dhyaan rakhungi ... lau tharrakar yah bolee ki .. uske sath hee uska deen aur eemaan bhee laut gayaa ..khwaab aur khuloos bhee kho gaya. jis pr wah aankhe band krke muskurai ki vah abhee bhee hai .. bhale hee kai hajaar prakash varh door ...
मर्मस्पर्शी रचना, बधाई आदरनीया गुल सारिका जी
बहुत सुंदर भाव! आपको हार्दिक बधाई इस प्रयास पर!
एक जिज्ञासा है कि यह बारहखड़ी क्या होती है? मार्गदर्शन प्रदान करें।
रचना में एक दो जगह अटकना पड़ा
//लौ थर्रा कर बोली//
लेकिन ‘क्या बोली’ यह स्पष्ट नहीं हुआ।
एक और निवेदन है कि ‘अभी भी’ जैसा शब्द उपयुक्त नहीं। ‘अब’ के साथ ‘भी’ के संयोग से ‘अभी’ बनता है। ऐसे में ‘अभी’ के साथ ‘भी’ का प्रयोग सही नहीं है।
बहरहाल, इस भावयुक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई!
आदरणीया गुल सारिका जी भावनात्मक रचना हेतु बधाई ।
बहुत सुन्दर दिल को छूती हुई रचना .. बहुत बहुत बधाई
ख्वाब और खुलूस भी खो गया
वह आंखे बन्द कर मुस्कुराई
वह था .. अभी भी था
यकीनन था
कई हजार प्रकाश वर्ष दूर
प्रकाश जिस सीधी रेखा से
होकर गुजरती है
वही शायद
उसकी हथेलियों मे नही था .......///वाह वाह बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया //हार्दिक बधाई आपको
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