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एक सच्चा गलत आदमी

एक सच्चा गलत आदमी
सच का पैरोकार होता है
नारे लगाता है
हवा में मुट्ठियाँ भांजता है
भरोसा लपकता है
फिर उन्हे चबाता है
प्रगतिशील कहलाता है
एक सच्चा गलत आदमी
कभी पूरा झूठ नही बोलता
गलतियाँ नही दोहराता
कभी धन कभी ताकत
कभी भावनाओं के जोर पर
भोलेपन से खेलता है।
जब आत्मा धित्कारती है
बद्दुआएँ कोचती हैं
सुबह मन्दिर मे मत्था टेक आता है
चढावा चढाता है
फिर बैठ जाता है अनेक प्रेयसियों मे से
किसी एक के सम्मुख,
कंचुकी के अंतिम गांठ खुलने तक
एक सच्चा गलत आदमी

तिलिस्मी होता है।

अपनेपन का ढोंग रचता हुआ
अपने छोटॆ कद से झुंझलाया हुआ
खडा हो जाता है
भ्रम की अट्टालिका पर
उडाता है मासूमियत का मजाक
खुद के दिये जख्मो पर
कैफियत पूछ-पूछकर
नमक छिडकता है।
एक सच्चा गलत आदमी

दूसरों की नजर मे
हमेशा अच्छा होता है।


इसी अच्छाई के प्रभाव मे
जब कर बैठता है
एक अदद सही काम
गलत परिणाम भुगतता है
एक सच्चा गलत आदमी
हमेशा गलत नही होता
और हमसब के भीतर  कहीं ना कहीं होता है।

.

ग़ुल सारिका

(अप्रकाशित और मौलिक)

Views: 768

Comment

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Comment by mrs manjari pandey on September 3, 2013 at 9:38pm

      

       आदर्णीया    सारिका जी ,अच्छा परिभाषित किया है एक सच्चे गलत आदमी को   बधाई !

Comment by Gul Sarika Thakur on September 2, 2013 at 8:30am

बहुत बहुत आभार आप सभी का.. अभिभूत हूँ .. इस प्रोत्साहन के लिये ... लेखनी सार्थक हुई ...

Comment by वीनस केसरी on September 2, 2013 at 3:48am

एक सच्चा गलत आदमी
कभी पूरा झूठ नही बोलता

वाह क्या बात है
आपने रचना में शब्दों का बहुत महीन ताना बाना बुना है

हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2013 at 12:25am

सच! वास्तविकता यही है, वास्तव में आज के इन्सान को सच व् झूठ दोनों मापदंड़ो से  ही होकर गुजरना पड़ता है,

बहुत बढ़िया रचना , हार्दिक बधाई आदरणीया गुल सारिका जी

Comment by रविकर on September 1, 2013 at 9:15pm

क्या खूब कहा है आदरेया
टिप्पणियां भी पढ़ी-
लाजवाब रचना-
सादर

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on September 1, 2013 at 2:16pm

"एक सच्चा गलत आदमी...." पहली पंक्ति पढ़कर दिमाग में प्रश्न कुलबुलाने लगे थे... जो रचना के साथ आगे बढ़ते हुये शांत होते गए... सचमुच  अक्सर आसपास हमें ऐसे अनेक 'चेहरे' दिख जाते हैं जो "पूरी सच्चाई से अपनी गलतियों का निर्वहन" करते दिखते हैं... समाज देश-काल पर पड़ने वाले दुसप्रभावों से निश्चिंत....

खूबसूरती से बात करती रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें....

Comment by मोहन बेगोवाल on September 1, 2013 at 2:04pm

गुल सारिका जी , आप जी  की रचना और बात कहने का अंदाज अति सुंदर , आज का मनुष्य दोहरे मापदंड अपनाता हे सच्च और  झूठ के बीच जिन्दगी बसर करता हे 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 12:30pm

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति आदरणीया गुल सारिका जी 

जिस परिपक्वता से इंसान के कई कई नकाबों को भेद भीतर के एक गलत आदमी को आप सामने लाई हैं.. बहुत ही सुदृढ़ सोच और इंसान के विविध साइकोलॉजिकल स्वरूपों की परख की मांग करता है.. 

आपकी इस अभिव्यक्ति नें Robert luis Stevenson जी के उपन्यास  Dr. Jekyll and Mr. Hide (इंसान या शैतान) की याद दिला दी.

बहुत बहुत शुभकामनाएँ .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 1, 2013 at 10:10am

आत्म चिंतन को प्रेरित करती शानदार रचएना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Gul Sarika Thakur on September 1, 2013 at 8:31am

आदरणीय श्याम जुनेजा जी,

यहाँ 'सच्चा' शब्द को उस सन्दर्भ मे लें जब कोई आदमी सिर्फ और सिर्फ गलत होता है और उस गलत होने का सच्चाई से पालन करता है। क्या आपने नही देखा ऐसा आदमी? बौद्धिक, दूसरों की नजर मे अच्छा और नीयत मे खोट वाला आदमी? निश्व्चय ही आप भाग्यशाली हैं? एक आदमी के भीतर कई आदमी होता है ..... अगर मैं कहूँ हर चेहरे पर नकाब है तो आपको निश्च्य ही मान्य होगा मैने नकाब उलट दिया ... अब पहचानिये ... आस पास ही  होगा ऐसा ..... नेताओं के झुंड मे, समाज सेवकों की टोली मे और नही तो अपने घर पडोस मोहल्ले मे ...

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