सुनो ऋतुराज! – ११
ये मान मनौव्वल, झूमा-झटकी
बरजोरी, करजोरी और मुँहजोरी
तभी तक, जब तक
इस वैभवशाली ह्रदय का
एकछत्र साम्राज्य तुम्हारे नाम है
जिस दिन यह रियासत हार जाओगे
विस्थापित होकर कहाँ जाओगे?
फिर हम कहाँ और तुम कहाँ
सुनो ऋतुराज
हर नगरी की हर चौखट पर
पी की बाट जोहती सुहागिने
मुझ जैसी अभागन नही होती
खोने को सुख चैन
पाने को बेअंत रिक्त रैन
सुख की अटारी और दुख की पिटारी
अब दोनो तुम्हारे नाम
कभी फुरसत में करना हिसाब
मेरे हिस्से क्या और तुम्हारे जिम्मे क्या
सुनो ऋतुराज!
प्रीत के प्रपंच मे
छल को जायज कहा जिसने
वह स्वयं के हाथों छला गया होगा
आनन्द तो तब आए
आंसूओं की बून्द गिरे
और घाव पर नमक की परत चढ जाए
इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा
सुहागन के सिन्दूर से उसकी कमीज
नहीं हुई होगी लाल
सुनो ऋतुराज
इस ब्याहता ने सिन्दूर से होली खेली है
कहीं भी जाओ
कभी भी आओ
एक बात याद रखना
अपनी कमीज
झक्क सफेद रखना। ...................... ग़ुल सारिका
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया गुल सारिका जी:
३ सप्ताह के लिए सफ़र पर था, अत: आपकी यह सुन्दर रचना अब पढ़ी।
बहुत ही भाव व्यंजित मनोहारी कविता लिखी है आपने ।
निम्नांकित पंक्तियाँ मन को बहुत भायीं....
आंसूओं की बून्द गिरे
और घाव पर नमक की परत चढ जाए
इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा
सुहागन के सिन्दूर से उसकी कमीज
नहीं हुई होगी लाल
आपको शत-शत बधाई।
विजय निकोर
वाह !! एक साँस में पढ़ गयी .. बहुत -२ बधाई आदरणीया .. गजब की प्रस्तुति //
इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा
सुहागन के सिन्दूर से उसकी कमीज
नहीं हुई होगी लाल सुनो ऋतुराज
इस ब्याहता ने सिन्दूर से होली खेली है.....बहुत खूब, अद्भुत! हार्दिक बधाई.
आंसूओं की बून्द गिरे
और घाव पर नमक की परत चढ जाए
इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा
सुहागन के सिन्दूर से उसकी कमीज
नहीं हुई होगी लाल
सुनो ऋतुराज
इस ब्याहता ने सिन्दूर से होली खेली है
कहीं भी जाओ कभी भी आओ
एक बात याद रखना
अपनी कमी झक्क सफेद रखना। ........बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
सुनो ऋतुराज
इस ब्याहता ने सिन्दूर से होली खेली है
कहीं भी जाओ
कभी भी आओ
एक बात याद रखना
अपनी कमीज
झक्क सफेद रखना।..................सुनो ऋतुराज.....यह दिलेरी मन को भा गयी.
एक प्रेयसी या सुहागन का ऋतुराज.. और उससे जुड़े अन्तः के अनगिन भाव
इस कशिश पर मन मुग्ध हो गया. प्रेम, गर्व, पीड़ा जनित सीख सिखाने के भाव और चेतावनी सब कुछ है इस अभिव्यक्ति में.
बहुत पसंद आई यह रचना
हार्दिक शुभकामनाएँ
रचना में निस्स्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा है तो संशय भी. समर्पित हो जाने की आश्वस्ति है तो अपने भाव का गर्व भी. अर्पण का सुख है तो आहत मन की पीड़ा भी. बहुत खूब
प्रस्तुति अच्छी लगी, आदरणीया गुल सारिकाजी. बहुत-बहुत बधाई
Abhaari hun Aap sabhee .. rachna ke bhaw ne sparsh kiya .. lekhani sarthak huee ...
छल को जायज कहा जिसने
वह स्वयं के हाथों छला गया होगा
आनन्द तो तब आए
आंसूओं की बून्द गिरे
और घाव पर नमक की परत चढ जाए
इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा ............................ भाव बहुत ही सुंदरता से पिरोये गए है , सच मे अगर घाव देने वाले के घाव पर बूंद गिरे तो मजा आए ।
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