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किस लिए तर्क-ए-तअल्लुक़ के तू पहलू देखे (131 )

ग़ज़ल( 2122 1122 1122 22 /112 )
किस लिए तर्क-ए-तअल्लुक़ के तू पहलू देखे
ज़ीस्त भर के लिए क्यों हिज्र के बिच्छू देखे
**
था कभी वक़्त तुझे दिखती थी बस अच्छाई
जब भी देखे तू मेरी अब तो बुरी खू देखे
**
सूखे टुकड़े भी हैं देखे किसी थाली में कभी
जाम-ए-मय संग कहीं सजते हैं काजू देखे
**
इश्क़ में देखे हैं तेज़ाब से झुलसे चेहरे
और कहीं शम'अ पे लुटते हुए जुगनू देखे
**
ज़ुल्म ये दोस्त रक़ीबों के भी है बस का नहीं
कौन चाहेगा तेरी आँख में आंसू देखे
**
आजकल इश्क़ का मतलब है फ़क़त हासिल-ए-जिस्म
किसको फ़ुरसत है कोई प्यार की ख़ुश्बू देखे
**
पाटते लोग हैं ज्यों साहिल-ए-ज़ू मुमकिन है
अगली पीढ़ी कहीं तस्वीर में ही जू देखे
**
डूबते देखे सफ़ीने हैं तलातुम में बहुत
और गिर्दाब से बचने के भी जादू देखे
**
रक़्स मीरा का इबादत से भरा देखा 'तुरंत '
और बेआबरू होते भी हैं घुँघरू देखे
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
मौलिक व अप्रकाशित

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