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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ''s Blog (137)

अगर हक़ीक़त में प्यार था तो सनम हमारे मज़ार जाएँ (137)

एक परम्परागत ग़ज़ल ( 121 22 *4 )
अगर हक़ीक़त में प्यार था तो सनम हमारे मज़ार जाएँ
कि आरज़ू है अक़ीदतों का वो सबसे पहले दिया जलाएँ
**
अगर अभी तक है याद बाक़ी तो इल्तज़ा है करें इनायत
हिना लगाकर वो दस्त-ओ-पा पर हमारा रोज़-ए-फ़ना मनाएँ
**
हमारी ख़ातिर दुआ न मांगें कि जन्नतें हों हमें भी हासिल
वतन में अम्न-ओ-सुकूँ की…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on November 24, 2022 at 6:30pm — 4 Comments

आपका इन्तिख़ाब कर डाला(136)

ग़ज़ल(2122 1212 22 /112 )
आपका इन्तिख़ाब कर डाला
हमने कार-ए-सवाब कर डाला
**
बर्क़-ए-हुस्न-ओ-शबाब चमकी जब
आपको बे-हिज़ाब कर डाला
**
पी मय-ए-चश्म ख़ूब जी भर के
ख़ुद को मस्त-ए-शराब कर डाला
**
छा गई हुस्न की अदा हम पर
मौज़िजा लाजवाब कर डाला…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on November 19, 2022 at 7:00pm — 8 Comments

जो नहीं है यार तू पास में तो न रंग-ए-फ़स्ल-ए-बहार हैं (135 )

ग़ज़ल( 11212 11212 11212 11212 )
जो नहीं है यार तू पास में तो न रंग-ए-फ़स्ल-ए-बहार हैं
न है बर्ग-ए-गुल न शमीम-ए-गुल मेरी ज़ीस्त में बचे ख़ार हैं
**
तेरे हिज्र से जो मिले हैं ग़म वही दौलतें हैं मेरी सनम
मेरी फ़िक्र का है सबब तो बस ये बढे हुए ग़म-ए-यार हैं
**
मेरे वास्ते है तू नाज़नीं बड़ी दिलनशीं लगे महज़बीं
अरे…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 22, 2021 at 11:30pm — 3 Comments

मुहब्बत की हमारी आख़री मंज़िल तुम्हीं तो थे (134 )

ग़ज़ल ( 1222 1222 1222 1222 )
मुहब्बत की हमारी आख़री मंज़िल तुम्हीं तो थे
सफ़र भी तुम मुसाफ़िर तुम मक़ाम-ए-दिल तुम्हीं तो थे
**
अकेलेपन के साथी हो अभी तक याद में ढलकर
मुसीबत में ख़ुशी में बारहा शामिल तुम्हीं तो थे
**
हथेली की लकीरों को नुज़ूमी को दिखाते क्या
तुम्हीं कल थे हमारा और मुस्तक़्बिल तुम्हीं तो…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 17, 2021 at 8:30pm — 5 Comments

ज़ुबान कुछ शिकायती भी कीजिए कभी कभी (133 )

ज़ुबान कुछ शिकायती भी कीजिए कभी कभी
निज़ाम से तनातनी भी कीजिए कभी कभी
**
हयात के लिए हैं दोस्त ख़ुश्क़ अश्क पुरख़तर
फुगाँ की रस्म अदायगी भी कीजिए कभी कभी
**
विसाल और हिज्र के मज़े भी हैं जुदा जुदा
सुपुर्द-ए-हिज्र ज़िंदगी भी कीजिए कभी कभी
**
कशीदगी गमों से हम निभा…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 14, 2021 at 4:00am — 4 Comments

ग़लत है मीर तो उस से भी कुछ सवाल करें

(१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२ )
ग़लत है मीर तो उस से भी कुछ सवाल करें
न हैसियत न रसूखों का फिर ख़याल करें
**…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 30, 2021 at 1:30pm — No Comments

किस लिए तर्क-ए-तअल्लुक़ के तू पहलू देखे (131 )

ग़ज़ल( 2122 1122 1122 22 /112 )
किस लिए तर्क-ए-तअल्लुक़ के तू पहलू देखे
ज़ीस्त भर के लिए क्यों हिज्र के बिच्छू देखे
**
था कभी वक़्त तुझे दिखती थी बस अच्छाई
जब भी देखे तू मेरी अब तो बुरी खू देखे
**
सूखे टुकड़े भी हैं देखे किसी थाली में कभी
जाम-ए-मय संग कहीं सजते हैं काजू देखे
**…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 23, 2021 at 9:30pm — No Comments

वो कहते हैं वतन के ख़्वाब हम मिस्मार कर देंगे( 130 )

वो कहते हैं वतन के ख़्वाब हम मिस्मार कर देंगे
सभी के बीच नफ़रत की खड़ी दीवार कर देंगे
**
सियासत सिर्फ़ चमके एक है उनका यही मक़सद
घरों में दुश्मनों की फौज़ को तय्यार कर देंगे
**
वो ऐसे बीज बोएँगे उगेगी फ़स्ल काँटों की
उन्ही काँटों से फिर हर रास्ता दुश्वार कर देंगे
**
वो इतनी नफ़रतें भी पाल कर…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 16, 2021 at 10:00pm — 6 Comments

अम्न का माहौल हो आराम-ए-जाँ के वास्ते (129 )

ग़ज़ल( 2122 2122 2122 212 )
अम्न का माहौल हो आराम-ए-जाँ के वास्ते
जूँ कि गुल दरकार है इक गुलसिताँ के वास्ते
**
है शराब अच्छी अगर तो रिन्द ख़ाली कर सुबू
पर नमूना छोड़ दे पीर-ए-मुग़ाँ के वास्ते
**
है चना कोई अकेला भाड़ क्या फोड़ेगा वो
लोग होते हैं ज़रूरी कारवाँ के वास्ते
**…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 10, 2021 at 3:30pm — 6 Comments

न तनाब-ए-इश्क़ छुड़ाइए ये सितम हुज़ूर न ढाइए (128 )

ग़ज़ल  ( 11212 11212 11212 11212 )
न तनाब-ए-इश्क़ छुड़ाइए ये सितम हुज़ूर न ढाइए
यही इल्तज़ा है कि दिल से यूँ न उमीद-ए-ज़ीस्त मिटाइए
**
हमें इश्क़ में हैं तलाशने कई संग-ए-रह बनें हमसफ़र
है मुफ़ीद ये कि क़दम सनम ज़रा साथ साथ बढ़ाइए
**
ये जो कनखियों से है देखना ये झुकी नज़र फिर उठी नज़र
ये अदा है आपकी पुरख़तर किसी और को न…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 6, 2021 at 12:30pm — No Comments

थक चुके हैं आपका हुज़ूर इंतज़ार कर (127 )

ग़ज़ल ( 212 1212 1212 1212 )
थक चुके हैं आपका हुज़ूर इंतज़ार कर
हाल-ए-दिल की आप अब तो आके लीजिए ख़बर
**
किस तरह से एतबार हम दिलाएँ आपकी
याद की शमीम से महकती दिल की रहगुज़र
**
हसरतें मुकाम तक पहुँच सकेंगी क्या कभी
या कि हम बनाएँगे हुज़ूर रेत के ही घर
**
बढ़ गईं हैं…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 4, 2021 at 7:00pm — 2 Comments

ग़मों से हम सभी आज़ाद होंगे (126 )

ग़ज़ल( 1222 1222 122 )
ग़मों से हम सभी आज़ाद होंगे
मगर शायद क़ज़ा के बाद होंगे
**
यक़ीनन अब जहाँ में फिर कभी भी
न पैदा कैस और फरहाद होंगे
**
ग़लतफ़हमी न पालें इश्क़ में ये
कि जो उश्शाक़ हैं सब शाद होंगे
**
मुहब्बत शय है वो जिसमें ख़ुशी से
कई आबाद और…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 30, 2021 at 11:30am — No Comments

ग़म सभी की ज़ीस्त से हों लापता कीजे दुआ

ग़ज़ल( 2122 2122 2122 212 )
ग़म सभी की ज़ीस्त से हों लापता कीजे दुआ
और ख़ुशियों से हो पैहम सामना कीजे दुआ
**
दिल मिलाने के लिए आगाज़ हो इक जश्न का
दिल न कोई अब रहे टूटा हुआ कीजे दुआ
**
नफ़रतों के सब शजर उखड़ें हमारे मुल्क से
और शगुफ़्ता हर शजर हो प्यार का कीजे दुआ
**…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 29, 2021 at 8:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल(22 22 22 22 22 22 2 )
किसने आज सजाई महफ़िल मेरी यादों की
कौन सफ़ाई का इच्छुक है अपनी आँखों की
**
दर्द बढ़ाती है पीरी का अपनों से दूरी
कौन समझता पीर जहाँ में घायल रिश्तों की
**
बाजू कट जाता है जिसका वो ही ये जाने
कितनी बढ़ती हैं तक़लीफ़ें उसके शानों की
**
कटता है…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 28, 2021 at 3:30pm — 11 Comments

हक़ीक़त का हमेशा सामना करने से डरते हैं (१२४ )

++ग़ज़ल++( 1222 1222 1222 1222 )
हक़ीक़त का हमेशा सामना करने से डरते हैं
मुहब्बत की वो पहले इब्तिदा करने से डरते हैं
मुहब्बत की उन्हें हासिल नहीं होती कभी मंज़िल
जहाँ में जो भी इज़हार-ए-वफ़ा करने से डरते हैं
न उन की कोई सुनता है न अपनी बात कह पाते
जो अक्सर लोग अर्ज़-ए-मुद्दआ करने से डरते हैं
कोई भी इल्म हो काबू में उनके आ नहीं…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 1, 2020 at 1:00pm — 2 Comments

फ़ितरत से हूँ मैं सब से जुदागाना समझिये (123)

( 221 1221 1221 122 )
फ़ितरत से हूँ मैं सब से जुदागाना समझिये…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 27, 2020 at 10:00pm — 8 Comments

आती है जब शमीम-ए-सदाक़त ज़बान से(१२२ )

( 221 2121 1221 212 )
आती है जब शमीम-ए-सदाक़त ज़बान से
तो क्यों चले न हम जहाँ में यार शान से
जैसे बदलती रुख़ है सबा अपना यक ब यक
वैसे कभी पलटते नहीं हम बयान से
कार-ए-जियाँ में कट रही कैसे है ज़िंदगी
पूछेगा दर्द कौन किसी नौ-जवान से
मेरी सलामती है सुबूत-ए-शिक़स्त-ए-ज़ुल्म
ख़ाली गया है तीर जो निकला कमान…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 31, 2020 at 7:00pm — 6 Comments

तमाम उम्र किया मैंने इन्तिज़ार तेरा (१२१ )

(1212 1122 1212 22 /112 )
तमाम उम्र किया मैंने इन्तिज़ार तेरा
नहीं रहा कभी मुमकिन भुलाना प्यार तेरा
**
न तेरी आहटों का सिलसिला रुका था कभी
हवाएँ करती रहीं ज़िक्र बार बार तेरा
**
सजा रखीं हैं करीने से दिल में यादें तेरी

कि दिल की धड़कनों पे अब भी इख़्तियार तेरा

**

अगरचे तुझ से मुलाक़ात अब है ना-मुमकिन

मगर है…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 30, 2020 at 4:00pm — 8 Comments

मुहब्बत की ज़मीँ देकर यक़ीं का आसमाँ दे दो (१२० )

( 1222 1222 1222 1222 )

मुहब्बत की ज़मीँ देकर यक़ीं का आसमाँ दे दो

रहोगे सिर्फ़ मेरे तुम मुझे बस यह ज़बाँ दे दो

न रक्खो चीज़ कोई तुम तअल्लुक़ जिसका ग़म से है

तुम्हारी सिसकियाँ आहें कराहें और फुगाँ दे दो

परख लें एक दूजे को किसी कोने में रह लूंगा

मुझे कुछ दिन किराये पर सनम दिल का मकाँ दे दो

मुहब्बत में नफ़'अ-नुक़्सान की परवाह किसको है

चलो रक्खो तुम्हीं सब फ़ायदा मुझको ज़ियाँ दे दो

मेरे जज़्बात की कुछ क़द्र करना सीख लो हमदम

मेरी परवाज़-ए-उल्फ़त को खुला तुम…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 28, 2020 at 5:30pm — 7 Comments

वक़्त ने हमसे मुसल्सल इस तरह की रंजिशें (११९ )

एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल 

(2122 2122 2122 212 )

वक़्त ने हमसे मुसल्सल इस तरह की रंजिशें

ख़ुदक़ुशी को हो गईं मज़बूर अपनी ख़्वाहिशें

अजनबी जो भी मिले सारे मुहब्बत से मिले

और की हैं ख़ास अपनों ने हमेशा साज़िशें

क्या ख़ुदा नाराज़ है कुछ आदमी से इन दिनों

गर्मियोँ के बाद आईं थोक में हैं बारिशें

क्यों नुज़ूमी को दिखाता हाथ है तू बार बार

क्या लकीरें हाथ की रोकेंगीं तेरी…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 4, 2020 at 9:30pm — 6 Comments

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