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Dimple Sharma जी , उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुरंत'जी नमस्ते वाह बहुत ख़ूब आदरणीय, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय, पांचवा शेर बहुत कमाल हुआ है आदरणीय उस्ताद मोहतरम और आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब की इस्लाह अनुसार तो शेर और भी निखर जाएगा ।
आदरणीय Samar kabeer साहेब आदाब , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'हयात पर है अभी तक भी इख़्तियार तेरा'
इस मिसरे में 'अभी तक' के साथ 'भी' का प्रयोग उचित नहीं, ग़ौर करें,और मिसरा बदलने का प्रयास करें ।
'ख़िज़ाँ की उम्र है लेकिन सुरूर क़ायम है'
इस मिसरे पर जनाब 'अमीर' जी से सहमत हूँ, उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-
'ख़िज़ां रसीद: हैं लेकिन सुरूर क़ाइम है'
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहेब , मुआफ़ी चाहता हूँ , आपकी बात को ठीक से अब समझा , मेरा ध्यान तू /तेरा की तरफ चला गया था /मुझे लगा आप शतुरगुरबा की और इशारा कर रहे हैं | समर कबीर साहेब की समीक्षा की मुझे भी प्रतीक्षा है ,लेकिन आपकी पुल्लिंग वाली बात से सहमत हूँ , आपका आशय मिलती की झगह मिलता करने से है ये बात अब समझ आई | हार्दिक आभार |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत जी, मैंने आप, तुम, तू को लेकर तो कोई टिप्पणी नहीं की थी जिस पर आपने बे वज्ह ही अपनी काफ़ी क़ुव्वत ज़ाया कर दी, सिर्फ इतना ही अर्ज़ किया था कि : "जनाब शाइरी में महबूब को पुल्लिंग लिखा जाता है।" और आपको बताना चाहूँगा कि ये बात मैने उस्ताद-ए-मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब से सीखी है।
दूसरी बात आप फरमाते हैं कि "जब उम्र-ए-अदम , उम्र-ए-बहार का प्रयोग हो सकता है तो उम्रे -ख़िज़ाँ भी हो सकता है |
बुज़ुर्गवार बेशक सहीह फ़रमाया उम्र-ए-ख़िज़ाँ ही क्यों उम्र-ए-लम्हा भी होता है मगर जैसा आपका कहना है कि :
ख़िज़ाँ की उम्र =बुढ़ापा (श्लेष का प्रयोग है ) मैं सहमत नहीं हूँ, ख़िज़ाँ की उम्र को बुढ़ापे के मआनी में नहीं ले सकते। बाक़़ी अगर उस्ताद मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब इस चर्चा को देखें तो उन से दरख़्वास्त है कि अगर वक़्त हो तो अपनी क़ीमती राय से रोशनास फ़रमाएं। सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहेब , आपकी त्वरित प्रतिक्रिया से दिल बाग़ बाग़ है , सादर नमन | आपकी समीक्षात्मक टिप्पणियां सदैव कुछ न कुछ सीखने को प्रोत्साहित करती हैं | जनाब शाइरी में महबूब को पुल्लिंग लिखा ही जाये ज़रूरी नहीं है | ये मतले में आपने क्या सम्बोधन दिया इस पर निर्भर है | दूसरा जहाँ रदीफ़ तेरा का इस्तेमाल है तो यहाँ तो तुम का भी सम्बोधन नहीं दे सकते | तू और तेरा /तुझे ही करना पडेगा | आप तो जानते हैं "तू " महबूब से अत्यधिक अंतरंगता को प्रदर्शित करता है | ऐसा कोई नियम नहीं है कि आप तू और तेरा का प्रयोग शाइरी में कर ही नहीं सकते | ख़ुदा या रब के साथ भी जब तू प्रयोग हो सकता है तो महबूब के साथ क्यों नहीं | यह केवल भ्रम फैलाया हुआ है कि तू का प्रयोग हो नहीं सकता |
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले --ग़ालिब (यहाँ ग़ालिब साहेब ने जानबूझकर आपके या तुम्हारे इस्तेमाल नहीं किया तेरे किया )
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मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो
काफ़िर अगर हज़ार बरस दिल में तू न हो--दाग़ देहलवी
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बज़्म में जो तिरा ज़ुहूर नहीं
शम-ए-रौशन के मुँह पे नूर नहीं--मीर तकी मीर
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ख़िज़ाँ की उम्र =बुढ़ापा (श्लेष का प्रयोग है ) जब उम्र-ए-अदम , उम्र-ए-बहार का प्रयोग हो सकता है तो उम्रे -ख़िज़ाँ भी हो सकता है |
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ये ज़रूरी भी नहीं है आदरणीय सभी शेर सभी को पसंद आये | शाइर तो अपने ख़याल लिखता है पसंद /नापसंद पाठक पर ही निर्भर है | आशिक़ उसे ढूंढ़ कर किस रूप में अपनाएगा यह बाद में देखा जाएगा पहले तो आप उसके इश्क़ की कशिश देखिये |
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन, अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ, पहला, दूसरा, तीसरा, छटा और आठवाँ शे'र ज़बरदस्त है।
"हुआ है क्या जो हक़ीक़त में तू नहीं मिलती" जनाब शाइरी में महबूब को पुल्लिंग लिखा जाता है।
"ख़िज़ाँ की उम्र है लेकिन सुरूर क़ायम है" जनाब ख़िज़ाँ की उम्र नहीं, हवा, मौसम या दौर वग़ैरह होता है।
"जनम तू ले तो सही एक बार फिर से कहीं
क़सम से ढूंढ ही लेगा 'तुरंत ' यार तेरा" जनाब जहांँ तक मक़्ते के मफ़हूम को मैं समझ पाया हूँ पसंद नहीं आया है,
अगर महबूब के पुनर्जन्म लेने पर वर्तमान जीवन में आशिक़ उसे ढूंढ भी लेगा तो किस रूप में अपनाएगा?
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