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आती है जब शमीम-ए-सदाक़त ज़बान से(१२२ )

( 221 2121 1221 212 )
आती है जब शमीम-ए-सदाक़त ज़बान से
तो क्यों चले न हम जहाँ में यार शान से
जैसे बदलती रुख़ है सबा अपना यक ब यक
वैसे कभी पलटते नहीं हम बयान से
कार-ए-जियाँ में कट रही कैसे है ज़िंदगी
पूछेगा दर्द कौन किसी नौ-जवान से
मेरी सलामती है सुबूत-ए-शिक़स्त-ए-ज़ुल्म
ख़ाली गया है तीर जो निकला कमान से
इज्ज़त बचानी आपको है बज़्म में अगर
तो गुफ्तगू करें न किसी बदज़बान से
शाख़ों से तोड़ पाए न कच्ची कली कोई
उम्मीद है चमन के हर इक बाग़बान से
जीना किसी के वास्ते आसान कब हुआ
गुज़रा नहीं है कौन यहाँ इम्तिहान से
सीखें अदब तमीज़-ओ-शराफ़त जनाब ख़ुद
ग़ायब हैं ऐसे लाल-ओ-गुहर अब दुकान से
अपने ही आस पास ख़ुशी ढूंढिए 'तुरंत '
बारिश ख़ुशी की होती नहीं आसमान से
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 11, 2020 at 3:41pm

आदरणीय Harash Mahajan जी ,इस प्रेरक प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार  

Comment by Harash Mahajan on September 11, 2020 at 12:36pm

वाह आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी बहुत ही उम्दा । कितना सपाट कहा है "

इज्ज़त बचानी आपको है बज़्म में अगर
तो गुफ्तगू करें न किसी बदज़बान से"
  • ये तो बहुत पसंद आया मगर
पूरी ग़ज़ल ही शानदार ।
सादर
Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 11, 2020 at 8:48am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी इस प्रेरक प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार  

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 11, 2020 at 8:47am

आदरणीय आशीष यादव  जी , इस प्रेरक प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 11, 2020 at 8:07am

आ. भाई गिरधारी सिंह जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by आशीष यादव on September 10, 2020 at 10:07pm

आदरणीय श्री गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी जी बहुत सुंदर गजल बनी है। हर शेर बेहतरीन है। पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है। 

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