मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहेब
प्रेरक प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार एवं नमन |
Aazi Tamaam, साहेब , आपकी
प्रेरक प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार एवं नमन |
'' क्या फ़साने नज़्म होते हैं फ़क़त अल्फ़ाज़ से
सोज़-ए-दिल भी है ज़रूरी दास्ताँ के वास्ते " चौथा शे'र ... लाजवाब। मुहतरम 'तुरंत' साहिब आदाब। मुबारकबाद पेश करता हूँ।
पाँचवा और छठा शे'र भी उम्दा हुए हैं। सादर।
बेहद ही खूबसूरत ग़ज़ल है बधाई स्वीकार करें आ० गहलोत जी
आदरणीय Sushil Sarna जी , इस प्रेरक प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार एवं नमन |
मौज में अपनी गरजते और बरसते हैं सहाब
कौन करता है मदद अब्र-ए-रवाँ के वास्ते
वाह आदरणीय गहलोत साहब वह क्या अशआर हैं। हमेशा की तरह खूबसूरत अहसासों की शानदार ग़ज़ल. . हार्दिक बधाई सर।
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