क्या कहूँ साथ अपने वो क्या ले गई
आँधी थी सायबाँ ही उड़ा ले गई
मैंने बस एक ही गाम उठाया मुझे
रहनुमा बन के तेरी दुआ ले गई
काम आये सितारे अँधेरो में रात
जब चिरागों की लौ को हवा ले गई
मुझको लहरों से क्यूँ हो शिकायत भला
गल्तियों को मेरी वो बहा ले गई
जीने की कोशिशें उसकी बेजा नहीं
क्या हुआ गर खुशी वो चुरा ले गई
रात के ख़्वाब बाकी थे आँखों में कुछ
सुब्ह की बेरहम धूप उठा ले गई
(मौलिक तथा अप्रकाशित)
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सर क्या इतनी छूट
क्या कहूँ /साथ अप/ने वो क्या/ ले गई
२१२ २१२ २१२
आँधी थी /सायबाँ /ही उड़ा /ले गई
रात के ख़्वाब बाकी थे आँखों में कुछ
सुब्ह की बेरहम धूप उठा ले गई
gazal achchhi lgi badhai aapko sr ji
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