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अहसास की ग़ज़ल-मनोज अहसास

2122   2122     2122     212

जब सफलता मिल गई खुद का किया लिक्खा गया,
अपनी हारों को खुदा का फैसला लिक्खा गया।

आपके शफ्फाक दामन को बचाने के लिए,
कत्ल मुझ बदबख्त का इक हादसा लिक्खा गया।

दर ब दर होते रहे वो सारे खत खुशियों भरे ,
जिन पर तेरा नाम और मेरा पता लिक्खा गया।

चार भाई साथ रहकर कितने खुश थे हम कभी,
टूटकर बिखरे तो फिर दिल भी जुदा लिक्खा गया।

अब हमारी जिंदगी में एक उलझन ये भी है,
उसके दिल में क्या था? आखिर खत में क्या लिक्खा गया।

इक नया अहसास लेकर जी रही है जिंदगी
एक दिन हर एक गम बीता हुआ लिक्खा गया।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on February 8, 2020 at 2:52pm

हार्दिक आभार आदरणीय

बेहद शुक्रिया

सादर

Comment by Samar kabeer on February 8, 2020 at 2:46pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'अपनी हारों को खुदा का फैसला लिक्खा गया'

इस मिसरे में 'हारों' शब्द उचित नहीं है,यूँ कह सकते हैं:-

'हार को अपनी ख़ुदा का फ़ैसला लिक्खा गया'

'आपके शफ्फाक दामन को बचाने के लिए'

इस मिसरे में 'शफ्फाक' शब्द ग़लत 

है,सहीह शब्द है "शफ़्फ़ाफ़" ।

'जिन पर तेरा नाम और मेरा पता लिक्खा गया'

ये मिसरा 'पर' शब्द के कारण बेबह्र हो रहा है,' पर' की जगह "प" कर लें ।

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