( 221 2121 1221 212 )
ज़िन्दान-ए-हिज्र से अरे आज़ाद हो ज़रा
नोहे* तू क़त्ल-ए-इश्क़ के दुनिया को मत सुना
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अक़्स-ए-रुख़-ए-सनम तेरे आएगा रू ब रू
माज़ी के आईने पे लगी धूल तो हटा
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दुनिया में जीने के लिए हैं और भी सबब
चल नेकियों के वास्ते कुछ तू समय लगा
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फिर साज़-ए-दिल पे छेड़ कोई राग पुरसुकूँ
दुनिया के वास्ते नया पुरअम्न गीत गा
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हैं इंतज़ार में तेरी दुनिया की महफिलें
तन्हाइयों के साथ का अब छोड़ सिलसिला
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उम्मीद रोशनी की है तुझसे जहान को
अब तीरगी में यार तू ऐसे न मुँह छुपा
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होता है आसमान में भी रख यक़ीं सुराख़
लेकिन है कोशिशों से ही मुमकिन ये मोजिज़ा
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हिम्मत को हारना नहीं है मुश्किलों का हल
इनका मुक़ाबला बचा है सिर्फ़ रास्ता
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बर्बाद इश्क़ कर के तेरा वो मज़े से है
साथी 'तुरंत' दर्द तू अपना भी दे भुला
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
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