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शुभ्र वस्त्र शांत रूप, नैनन में ज्ञानदृष्टि,

देवी हंसवाहिनी को हाथ जोड़ ध्याइये.

चरण कमल से हैं, आसन कमल का है,

ब्राह्मी ज्ञान दायिनी को, शीश ये नवाइये.

पुस्तक प्रतीक ज्ञान, वीणा सुर पहचान,

प्राणवायु ज्ञान की तो अब बन जाइये..

त्यागें द्वेष भाव और भूलें सब बैर-भाव,

ज्ञान बाँट-बाँट सृष्टि, स्वर्ग ही बनाइये,

--अम्बरीष श्रीवास्तव

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 15, 2011 at 9:33am

स्वागत है मित्र अरुण जी ! इसे सराहने के लिए हृदय से आभार मित्रवर!

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2011 at 4:10pm

आज हिंदी दिवस के सन्दर्भ में इस रचना को पढ़ा !! बहुत अच्छी कामना का काव्य !! साधुवाद !!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 14, 2011 at 12:32am

जय माँ शारदे !
स्वागत है आदरणीया सुनीता जी ! आपका हार्दिक आभार .....

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2011 at 11:47pm

स्वागत है भाई दुष्यंत सेवक जी ! घनाक्षरी की सराहना के लिए हार्दिक आभार मित्रवर! हम सभी के पास जो कुछ भी है वह माँ वीणा वादिनी की ही कृपा है .......

Comment by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 11:32pm
जय माँ वीणा वादिनी...
Comment by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 7:07pm

ahaaa. man prafullit ho gaya...prastut rachna ka ek ek shabd apne aap me maa saraswati ke charnon me sadar vandan ka dyotak hai....layatmakta ka bhi javab nahi....behad umda ambreesh bhaiya

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 10, 2011 at 1:28pm
नमस्कार मित्र सत्य कहा आपने ...हृदय से आभार आपका !
Comment by shrikantpandey on July 8, 2011 at 8:45am
अंबरीश जी,
नमस्कार,
सरस्वती वंदना पढ़ा,अच्छा लगा,ज्ञान की सागर है मां. ज्ञान द्वेष,छल-कपट,विरोध, लालच सभी से दूर ले जाता है,परन्तु जब ज्ञान पर कुठाराघात हो विरोध करना आवश्यक हो जाता है.परशुराम ने भी शस्त्र उठाया था, कृष्ण ने भी.

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