For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ~ " है स्याही सुर्ख़ फिर अपनी क़लम है ख़ूँ-चकाँ अपना "

122 2122 2122 2122 2

उखाड़ेंगीं भी क्या मिलकर हज़ारों आँधियाँ अपना

पहाड़ों से भी ऊँचा सख़्सियत का है मकां अपना

मिटाकर क्या मिटायेगा कोई नाम-ओ-निशाँ अपना

मुक़ाम ऐसा बनाएंगे ज़मीं पर मेरी जाँ अपना

चला है गर चला है डूबकर मस्ती में कुछ ऐसे

नहीं रोके रुका है फिर किसी से कारवाँ अपना

पहुँचने में जहाँ तक घिस गये हैं पैर लोगों के

वहाँ हम छोड़ आये हैं बनाकर आशियाँ अपना

कभी मिलने अगर आओ तो सादा दिल चले आना

की हमने भेस रक्खा है अभी तक पासबाँ अपना

ज़रा सी बात आखि़र क्यों किसी को ना समझ आये

सभी बंदर हैं सरकस के मदारी है निहाँ अपना

हज़ारों ख़्वाहिशें काग़ज़ पे ही दम तोड़ देती हैं

है स्याही सुर्ख़ फिर अपनी क़लम है ख़ूँ-चकाँ अपना

कहाँ भटकोगे ढूँढोगे क़रार इस दिल का तुम "आज़ी"

कहाँ मिलता है ढूंढे से किसी को आसमां अपना................... 

(मौलिक व अप्रकाशित) 

 आज़ी तमाम............... 

Views: 712

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 19, 2021 at 1:10pm

जनाब आज़ी 'तमाम' साहिब आदाब, मैं भी एक तालिब इल्म ही हूँ कोई उस्ताद नहीं।

आपके जवाब पर जिस बाद से सहमत हूँ वो ये कि 'खूँ-चकाँ' भी सहीह लफ्ज़ है, ग़ालिब साहिब के अशआर में बेशक इसका ज़िक्र है। इस जानकारी के लिए आपका धन्यवाद। 

शेष पर गुणीजनों की टिप्पणी का मुझे भी इंतज़ार रहेगा। सादर। 

Comment by Aazi Tamaam on February 17, 2021 at 3:28am

माफ़ी चाहूंगा आदरणीय जनाब अमीर जी

सख्शियत का मकां बिल्कुल साफ़ साफ़ अर्थ है

कोई भी सख्शियत होती है उसका वो किसी सख्श की ही होती है यहाँ सख्श का ही जिस्म या मस्तिष्क वो मकान दिखाया गया है

खूं चकां भी बिल्कुल सही है इसके लिये ग़ालिब की कुछ लाईन पेश हैं

जिक्र उस परीवश का,और फिर बयां अपना
बन गया रकीब आखिर,था जो रजदां अपना
मंजर इक बुलंन्दी पर और बना सकते
अर्श से उधर होता काश कि मकां अपना
दर्दे दिल लिखूं कब तक,जाउं उनको दिखला दूं
उंगलिया फिगार अपनी,खामा खूं-चकां अपना
हम कहां के दाना थे किस हुन्नर में यत्का थे
बेसबब हुआ ‘गालिब’ दुश्मन आसमां अपना

भेस पासबान का मतलब यहाँ चौकीदार एक साधारण व्यक्ति से है और सादा दिल का मतलब यहाँ सादा दिल से ही है बात एकदम साफ़ साफ़ ही कही गई है

बंदर सभी सरकस से मतलब सभी कुछ जो भी इस पृथ्वी पर जीवित है और मदारी निहाँ से छुपा हुआ मदारी अर्थात ख़ुदा से  तात्पर्य है बात पूरी ग़ज़ल में एकदम सीधे सीधे स्पष्ट की गई है

अगर फिर भी आपको लगता है गुरु जी जनाब अमीर जी तो क्षमा प्रार्थी हूँ हो सकता है मुझे आपकी टिप्पणी समझ न आई हो आप जरा विस्तार से बताएं शायद मैं कुछ सीख सकूँ

धन्यवाद

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 17, 2021 at 12:28am

122 2122 2122 2122 2

उखाड़ेंगीं भी क्या मिलकर हज़ारों अंधियाँ अपना

पहाड़ों से भी ऊँचा सख़्सियत का है मकां अपना ... इस मिसरे का शब्द विन्यास ठीक नहीं है "शख़्सियत का मकां" (मकान)? इसे यूंँ कह सकते हैं - 

पहाड़ों से भी ऊँचा है इरादों का जहाँ अपना 

मिटाकर क्या मिटायेगा कोई नाम ओ निशां अपना

मुकाम ऐसा बनाएंगे ज़मी पर मेरी जां अपना.    इस शे'र में निशां को निशाँ, ज़मी को ज़मीं जां को जाँ कर लें दीगर अशआर में भी देख लें। 

कभी मिलने अगर आओ तो सादा दिल चले आना

की हमने भेस रक्खा है अभी तक पासबां अपना ... इस मिसरे का कथ्य स्पष्ट नहीं है। 

जरा सी बात आखिर क्यों किसी को ना समझ आये

सभी बंदर हैं सरकस के मदारी है निहां अपना.........भाव स्पष्ट नहीं है, वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है। 

हज़ारों ख्वाहिशें काग़ज़ पे ही दम तोड़ देती हैं

है स्याही सुर्ख फिर अपनी कलम है खूँ चकां अपना....सहीह शब्द ख़ूँ-चकान या  ख़ूँ-चकानी है, इसका मुख़फ़्फ़ी नहीं है, क़लम शब्द स्त्रीलिंग है। 

उर्दू के अल्फ़ाज़ में नुक़्तों का ध्यान रखना लाज़िमी है।  सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service