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जब तन्हाई में यादों की बरसात ठहर सी जाती है
इक हूक सी उठती है दिल में ह'यात ठहर सी जाती है
चुपके चुपके आँखों ही आँखों में इश्क़ जवाँ होता है
गर जुम्बिश ना हो आँखों में शुरुआत ठहर सी जाती है
हर पल मिलने की चाहत में पल पल बेताबी रहती है
दिन ढलते ढलते ढल जाता है रात ठहर सी जाती है
होठों पर बात न आ जाये दिल बेचैनी में रहता है
होठों पर आते ही दिल की हर बात ठहर सी जाती है
रह रह कर आहें भरता है दिल ख़्वाब सज़ाता रहता है
मिलते ही अक्सर दिलवर से मुलाक़ात ठहर सी जाती है
बड़ते बड़ते जब इश्क़ जुनूँ इक हद से पार गुजरता है
धीरे धीरे फ़िर चाहत की सौग़ात ठहर सी जाती है
वैसे तो कितने शिकवे गिले होते हैं "आज़ी" दिलवर से
पर सामने आते ही सारी कायनात ठहर सी जाती है....
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम....
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