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उतरा है मधु मास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !

जन गण के तन मन सुरा घुली
गुनगुनी धूप की चोट लगी
कली खुल, वन प्रसफुटित हुई,
मुस्काय बेला चमेली है !

उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !!

कमल खिले हैं सरोवरों मेंं
मौज करे हम नावों में
मगन चिड़िया झील के तन हैं
वर बसन्त, प्रकृति मुस्काई है !
उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय  पर मस्ती  छाई है !!

बाण चलाया कामदेव ने
घायल चम्पा गुलमोहर हैं
लगी आग अंग-प्रत्यंग में
प्रकृति धूप में झुलसाई हैं !

उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है!!।

मधु चुराते पुष्प कली भँवरे
बसन्त - वन वो चोर लटेरे
मुग्ध उपवन, बाग रोमानी,
मधुरा घूँघट बौराई है !

उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !!

बौर आ लगा है अमराई
कल-रव गूँजा बन बलवाई
कोयल कूके है पेड़ों पर,
घाटी धूप में नहाई है !

उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !!

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2021 at 6:37pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । वसंत पर मनमोहक गीत हुआ है । बहुत बहुत बधाई ...

Comment by Chetan Prakash on March 8, 2021 at 6:32pm

नमन, श्याम नारायन वर्मा जी, 'गीत' को कोई  पारखी मिला, रचना और सृष्टा  दोनों हीअब सफल हो गये, और आप  जनाब कोटिश: धन्यवाद  के पात्र हैं!

Comment by Shyam Narain Verma on March 7, 2021 at 4:57pm
नमस्ते जी, वसंत पर मनमोहक प्रस्तुति, बहुत ही सुंदर गीत, हार्दिक बधाई l सादर

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