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करेगा इश्क़ जो सच्चा कभी जफ़ा न करे,
अगर हो हाथ में किस्मत कोई दगा न करे।
जुदा हो कर कोई भी रब्त फिर रखा न करे,
उसे कहो मेरे घर का वो रास्ता न करे।
उसूल कुछ तो अदावत में भी ज़रूरी है,
बना के दोस्त कोई फिर दगा किया न करे।
गिला नही है कि बस ज़िंदगी में दर्द मिले,
भले हैं दर्द ही झूठी ख़ुशी मिला न करे।
हमें तो इश्क़ ही ज़ख्मों से हो गया है सनम,
है इल्तिज़ा कि कोई इनकी अब दवा न करे।
निसार करती है औलाद पर सभी खुशियां,
कि अपनी मां को कभी भी कोई खफ़ा न करे।
जो रख दे मां के ही क़दमों में हर ख़ुशी अपनी,
उसे तलब किसी ज़न्नत की फिर हुआ न करे।
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