(पावन छंद)
सावन जब उमड़े, धरणी हरित है।
वारिद बरसत है, उफने सरित है।।
चातक नभ तकते, खग आस युत हैं।
मेघ कृषक लख के, हरषे बहुत हैं।।
घोर सकल तन में, घबराहट रचा।
है विकल सजनिया, पिय की रट मचा।।
देख हृदय जलता, जुगनू चमकते।
तारक अब लगते, मुझको दहकते।।
बारिस जब तन पे, टपकै सिहरती।
अंबर लख छत पे, बस आह भरती।।
बाग लगत उजड़े, चुपचाप खग हैं।
आवन घर उन के, सुनसान मग हैं।।
क्यों उमड़ घुमड़ के, घन व्याकुल करो।
आ झटपट बरसो, विरहा सब हरो।।
हे प्रियतम लख लो, तन का लरजना।
आ कर तुम सुध लो, बन मेघ सजना।।
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*पावन छंद*
लक्षण छंद:-
"भानजुजस" वरणी, यति आठ सपते।
'पावन' यह मधुरा, सब छंद जपते।।
"भानजुजस" = भगण नगण जगण जगण सगण
यति आठ सपते = यति आठ और सात वर्ण पे।
211 111 121 121 112 = 15 वर्ण,यति 8,7
चार चरण दो दो समतुकांत।
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सावन में प्रकृति की छटा का सुंदर वर्णन करती सुंदर रचना भैया।
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