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(शारदी छंद)

चले चलो पथिक।
बिना थके रथिक।।
थमे नहीं चरण।
भले हुवे मरण।।

सुहावना सफर।
लुभावनी डगर।।
बढ़ा मिलाप चल।
सदैव हो अटल।।

रहो सदा सजग।
उठा विचार पग।।
तुझे लगे न डर।
रहो न मौन धर।।

प्रसस्त है गगन।
उड़ो महान बन।।
समृद्ध हो वतन।
रखो यही लगन।।
===========

*शारदी छंद* विधान:-

"जभाल" वर्ण धर।
सु'शारदी' मुखर।।

"जभाल" = जगण  भगण लघु
।2। 2।। । =7 वर्ण, 4चरण दो दो सम तुकान्त
*****************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 31, 2021 at 7:48pm

बहुत सुंदर उत्साहवर्धक रचना। नए नए छंदों पर आपका लेखन अति प्रसंसनीय एवं संग्रहनीय है।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 19, 2021 at 11:39am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपके रचना पसंद करने और प्रोत्साहन का हार्दिक आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 19, 2021 at 9:17am

आ. भाई बासुदेव जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर रचना हुई है । नये छंद से परिचित कराने के लिए हार्दिक बधाई।

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