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आज सोया है शहर घर कर के !
खूब रोया खुदा महर कर के !!
क्या बुरा हो गया सनम मुझ से
देखता कब है वो नज़र कर के !
ज़हरीला बन गया हरेक रिश्ता याँ
खत्म हो हर अजाब मर कर के !
हम हैं मारे उसी की बेरुखी के
जिसको देखा नज़र वो भर कर के !
कोई है बात जो लगी दिल को
मिलता कोई नहीं खबर कर के !
क्या करू मिल के ज़िन्दगी से मैं
खौलता खून है कहर कर के !
कोई फौलाद सा हो मजबूत याँ
चल चले दोस्त आँख भर कर के !
मौलिक व अप्रकाशित
प्रोफ चेतन प्रकाश 'चेतन'
Comment
आदाब भाई, मौ. अनीस अरमान, बहुत इन्साफ हुआ ग़ज़ल के साथ और, सच कहूँ तो मेरे साथ भी! ममनून हूँ, आपका भाई! सलामत रहे ं !
जनाब चेतन प्रकाश जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने बहुत बहुत मुबारक
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