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ग़ज़ल......अब आदमी में जोश का ज़ज्बा नहीं रहा !

221     2121     1221     212

अब आदमी में जोश का ज़ज्बा नहीं रहा

मौसम  बहार का  वो सुहाना नहीं रहा 

हमको  तुम्हारा  तो सहारा  नहीं  रहा

वो  दर्द  ज़िन्दगी का अपना नहीं रहा

उम्मीद कब रही हमें इस ज़ीस्त से कभी

मंज़िल का जाँ कभी भी वो चहरा नहीं रहा

कोशिश बहुत की कोई हमदम कहाँ हुआ

इक दोस्त न मिला कभी साया नहीं रहा 

धोका मिला जहाँ हमें वुसअत के नाम पर 

सुन दोस्त ज़िन्दगी  का निशाना नहीं रहा 

ता उम्र हम भटकते हैं सहरा ही  हमनशीं 

हमदम  मिला हमें  तो कुहासा नहीं  रहा

आजिज तो आ चुके अभी उस दोस्त से यहाँ

वो दिल मला अपना नहीं अच्छा  नहीं  रहा 

मुफ़लिस अभी बहुत हैं जहाँ यारो इस जहाँ

'चेतन' मदद उन्हे करे  दस्ता  नहीं  रहा  !

मौलिक व अप्रकाशित 

प्रोफ.  चेतन प्रकाश 'चेतन'

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Comment by Chetan Prakash on February 4, 2022 at 12:08am

दूसरा मतला, ऊला यूँ पढ़े , कृपया "हमको तुम्हारा तो वो सहारा नहीं रहा ( 221 2121  1221  212 )

साथ  ही,शे'र सातवें का सानी, यूँ पढ़ें, कृपया,  "  वो दिलजला  रहा तो वो अच्छा नहीं रहा "( 221  2121  1221  212 ) ।

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