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तू उगता सा सूरज, मैं ढलता सितारा 

तेरी एक झलक से मैं छुप जाऊँ सारा 

तू गहरा सा सागर, मैं छिछलाता पानी 

तू सर्वगुण सम्पन्न मैं निर्गुण अभिमानी 

तू दीपक के जैसा मैं हूँ एक अंधेरा 

तू निराकार रचयिता, मैं हूँ अंकुर तेरा 

तू पर्वत सा ऊंचा, जो नभ को भी चूमे 

मैं खाई के जैसा धरा भी ना चूमे 

तू हल्का पवन सा, सभी में बसा है

मैं उत्सर्जन सा कोई कुछ भी ना बचा है 

तू नि:स्वार्थ दानी, मैं कोई पाखंडी 

ना तुझमें अहम हैं, पर मैं हूँ घमंडी

तू रास्ता सरल सा मैं छोटी पगडंडी 

तुझे ज्ञान सारा मैं जैसे कोई अज्ञानी

तू अंजान सा है सभी छल कपट से 

पर मेरी है यारी इन सारे गरल से

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

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