सशक्तिकरण का मील का पत्थर
जब देश आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मना रहा हैं तब 21जुलाई, 2022 का दिन भारत के इतिहास में लिखा जाने वाला गौरवान्वित करने वाला ऐतिहासिक दिन… नवभारत की भावना को अभिव्यक्त करने के साथ स्पष्ट संदेश प्रेषित होता हैं कि तुष्टीकरण की बजाय सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार को प्राथमिकता प्राप्त हुई।वैचारिक जड़ता को मिटाने वाला सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बड़ा कदम साबित हुआ।जमीनी स्तर के लोगों को सशक्त बनाना व वंचितों को आवाज देने और इतिहास को फिर से स्वर्णिम अक्षरों से लिखने की अवधारणा हैं।
पूर्वी भारत के ओडिशा के मयूरगंज जिले के उपरखेड़ा गांव के मुखिया बिरंची नारायण टुहूरिया के यहां 20 जून, 1958 में जन्मी द्रौपदी मुर्मू इतिहास रचकर राष्ट्रपति बनी।शीर्ष संवैधानिक पदभार संभालते हुये मुर्मू के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के साथ मातृशक्ति के अनन्य जुड़ाव का संदेश प्रेषित होता हैं। राजनीतिक बदलाव की मद्धिम पर ताजगी भरी नई उम्मीदों की…आस्था की बयार विस्तारित होते देख प्रतीत होता हैं कि सर्वभाव, सर्वजात,समानता,एकता,लोकतंत्र के प्रति विश्वास सुदृढ़ हो रही हैं।
वंचित वर्गों में स्वाभिमान का पुनर्जागरण होगा, जनजाति समाज में आशा की किरण बनकर अपनी अस्मिता का बोध जाग्रत होगा।महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।आजादी के बाद जन्म लेने वाली पहली महिला राष्ट्र की आदि शक्ति महामहिम द्रौपदी मुर्मू पहली आदिवासी गांव की शिक्षक रही और अब सेना की सर्वोच्च कमांडर!विषम परिस्थितियों में यहां तक पहुंचने का सफर प्रेरणास्रोत रहा।प्रथम नागरिक चुनकर लोकतंत्र की शक्ति दिखाई दी।
भारत के ससबसे वंचित जनजाति समाज की बेटी सर्वोच्च संवैधानिक पद की नई आभा परिवर्तन की अवधारणाओं को प्रतिबिम्बित कर इतिहास को बदलने को मजबूर कर दिया।अपने ही समाज में स्वाभिमान की भावना करने वाली मुर्मू उस गांव से हैं जहां पुरूषों को भी राजनीति में जाना बुरा माना जाता था।भूतपूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी (64 साल दो माह छैः दिन) के बाद सबसे कम उम्र की दौपदी मुर्मू (64 साल एक माह छैः दिन) राष्ट्रपति बनी। अंग्रेजी प्रेमी मुर्मू की नानी चाहती थी कि मुर्मू फर्राटेदार अंग्रेजी बोले इसके लिए नानी ने उन्हें भुवनेश्वर पढ़ने भेजी,वो गांव की पहली लड़की थी।
राजनीति की शुरूआत 1997 में हुई।इससे पहले 1979-1983 तक सिंचाई विभाग में जूनियर असिस्टेंट बनी।1994 -1997 तक शिक्षक रही, 1997 में राजनीति मे उतरी मुर्मू रायरंगपुर नगरपालिका में पार्षद बनी फिर चेयरपर्सन बनी।ओडिशा इकाई की अनुसूचित जाति व जनजाति मोर्चे की उपाध्यक्ष बनी।ओडिशा ने सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरूस्कार के लिए सम्मानित किया। जब मुर्मू झारखंड की राज्यपाल पर पदस्थ थी तब एक माँ द्वारा अपने बच्चे को किसी को गोद देने की खबर पता लगने पर उन्होंने उस बच्चे को गोद लेने की घोषणा की और पढ़ाई-लिखाई का भार उठाने का संकल्प लिया।इसी तरह प्रकृति प्रेमी मुर्मू का मानना हैं कि पेड़ पोषणकर्ता के साथ ही जीवन साथी हैं। अब्दुल कलाम का आदर्श मानते हुये कहते हैं कि एक परिवार को दस पेड़ लगाना चाहिए।ट्रीज फोर टाईगर अभियान चलाकर पचास लाख पेड़ लगाएं।
2009-2015 इन छैः सालों में उन्होंने पहाड़-सा दुःख झेला।पति,दो बेटे,माँ की मृत्यु व्यक्तिगत त्रासदियों ने भी उन्हें जन सेवा करने से बाधित नहीं होने दिया।जन आकांक्षाओं को जीवन केन्द्र बनाने वाली मुर्मू का कार्यकाल विकासोन्मुखी व निष्कलक रहा।धैर्यता से सब परिस्थितियों को झेलती हुई अपना जीवन जन सेवा में समर्पित कर संकल्पित हुई और सार्वजनिक जीवन में उत्तम आदर्श स्थापित किए।विनम्रता की मूर्ति, जमीन से जुड़ी दयालुता का भाव समाहित मुर्मू का महामहिम बनना वंचित वर्ग व अत्यंत पिछड़े वर्ग के लिए संदेश जाता हैं कि व्यक्ति की अपनी कार्यशैली से सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर ऊंचाईयां पा सकता हैं।
स्वरचित व अप्रकाशित
बबीता गुप्ता
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