For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेमचंद जी के जन्मदिन पर लेख

कालजयी प्रेमचंद जी......... 

विश्व साहित्य पटल पर हिन्दी साहित्य के महान कथा सम्राट,महान उपन्यासकार प्रेमचंद जी का उतना ही सम्मान किया जाता हैं जितना कि गोर्की और लू श्यून का.... इसके बाद रविन्द्रनाथ टैगोर जी को प्राप्त हुआ। आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता, शब्दों के जादूगर प्रेमचंदजी का लेखन पत्रकारिता और साहित्य के माध्यम से हिन्दी की सेवा में आज की मौजूदगी कराता हैं।अधोरात्र लिखने वाले प्रेमचंद जी को हिन्दी लेखकों की आर्थिक समस्याएँ उन्हें कचोटती थी। 'हिन्दी में आज हमें न पैसे मिलते हैं ,ना यश मिलता हैं। दोनों ही नहीं। इस संसार में लेखक को चाहिए किसी की भी कामना किए बिना लिखता रहे।
राष्ट्र चेतना से संबन्धित विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पत्रकारिता को माध्यम बनाया। सामाजिक समरसता और स्वदेशी के भाव स्फूर्तरूप से समझाने में पत्रकारिता ही एक ऐसा सशक्त माध्यम हैं जो जनजागरण की प्रचंड प्रदीप्ति की ज्वाला रिपोतार्ज,लेख,रपट, पत्रकारिता, समीक्षा, लेखन, टिप्पणियाँ से जला सकता हैं।'महिला जगत से लेकर राष्ट्र भाषा के बड़े से बड़े अबगिनत मुद्दे, हिन्दू-मुस्लिम, छूयाछूत,साहित्य दर्शन जैसे कई विषयों पर अपनी कलाम चलाकर जनमानस से सीधे जुड़े किस्से सामाजिक,राजनैतिक, बौद्धिक क्रान्ति लाई जा सके। 
कथा शिल्पी प्रेमचंदजी का काल महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता और अहिंसात्मक युद्ध का था। राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रचेतना, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, स्वदेशी आंदोलनों की गूंज से उथल-पुथल वातावरण से प्रेमचंद जी साहित्य सृजन तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि पत्रकारिका द्वारा राष्ट्रीय चेतना वाला साहित्य लिख एयर इसी वैचारिक भावना से ओत-प्रोत होकर सं 1903 में पत्रकारिता प्रारंभ की और सं 1930 में हंस पत्रिका चलने तक अपनी कलम चलाई। आपने हंस पत्रिका के प्रथम अंक में लिखा, 'हंस भी मानसरोवर की शांति छोड़कर अपनी नन्ही चोंच में चुटकी भर मिट्टी लिए हुये समुद्र पाटने, आजादी की जंग में योगदान देने वाले साहित्य और समाज में वह उन गुणों का परिचय करा ही देगा, जो परंपरा से उसे प्राप्त हुये हैं।'
 निजी जीवन के झंझवातों का दर्द ,संवेदनाएँ उनके लेखन कार्य में दृष्टिगोचर होती हैं। दशकों पूर्व जिन समस्याओं के प्रति किया था ,वो वर्तमान में यथावत हैं। वर्तमान में उठती सांप्रदायिकता की समस्या का बिगुल मुंशी जी ने हंस पत्रिका में रपट का शीर्षक 'अच्छी और बुरी सांप्रदायिकता ' में हवाला दिया था...'अगर सांप्रदायिकता अच्छी हो सकती हैं तो पराधीनता भी अच्छी हो सकती हैं, झूठ भी अच्छा हो सकता हैं।……बुरी सांप्रदायिकता को उखाड़ फेंकना चाहिए अगर अच्छी सांप्रदायिकता वह हैं जो अपने क्षेत्र में बड़ा उपयोगी काम कर सकते हैं,उसकी अवहेलना क्यों की जाए।' अज़हर हाशमी, प्रसिद्ध कवि और गीतकार का वक्तव्य हैं कि प्रेमचंद जी की पत्रकारिता ने समाज में सौहदर्ता का पाठ प्रशस्त किया। मेरे मौलिक मत में मुंशी जी की पत्रकारिता प्रेम का पनघट थी। जहां सौहार्द  की सुराही से हिन्दू-मुस्लिम एकता पानी पीती थी। लेकिन ऐसी पत्रकारिता करने वाले की सुविधाओं के सिक्के नहीं बल्कि मुफ़लिसी के मुक्के मिले। पत्रकारिता तब ही सद्भावना सेतु बनेगी, जब सदाशयता का सीमेंट और इंसानियत रूपी ईंटों के साथ संवेदनशीलता का साहस चाहिए। सौहार्द की स्थापना के लिए सहूलियत को त्यागना पड़ता हैं।
आम जनता में असहमति होने पर ना कहने का साहस और सहमत होने के लिए अपना विवेक विकसित करने के लिए अच्छे-बुरे की पहचान होनी चाहिए जनमत निर्माण करने का दस्तावेज और निष्पक्षता से साहस,दिलेरी से बेबाक टिप्पणी करने वाले प्रेमचंद जी ने पत्रकारिता को ईमान और इंसान की पत्रकारिता बना दिया।फरवरी, 1934 में हंस पत्रिका में जाति भेद मिटाने की एक आलोचना जिसमें उनकी पीड़ा स्पष्ट झलकती हैं….'इंसान हम बाद में हैं, पहले जाति,ऊंट-नीच के बंधनो के जाल में गुंथे हुये हैं। आगे रपट की एक पंक्ति 'प्रस्ताव बड़े रूप में हैं, हम उस दिन को भिरत के इतिहास में मुबारक समझेगे,जब सभी हरिजन ब्राह्मण कहलाएंगे।'
हाशमी जी का मानना है कि वर्तमान पत्रकारों के लिए, मुंशी प्रेमचंद चंद जी की पत्रकारिता एक ऐसी पुस्तक हैं जिसमें विश्वास की वर्णमाला,  बहादुरी की बारहखड़ी, प्रेम के पाठ और अपनत्व के अध्याय हैं, पठनीय व अनुकरणीय भी हैं। आवाजे मल्क में एक मई,1903 से 24 सितम्बर, 1903 तक ऑलिवर क्राॅणवेल के विभिन्न प्रसंगों पर टिप्पणी छपी।स्वदेश और मर्यादा में रिपोतार्ज करने के साथ उर्दू के प्रसिद्ध पत्र  जमाना से उनका आत्मीय रूप से लगाव जो जीवनपर्यन्त बना रहा।इसमें रपटों और टिप्पणियों के अलावा रफ्तारे जमाना के नाम से स्थायी स्तंभ लिखा और बेधड़क होकर सशक्त लेख, स्पष्ट वक्तव्य के साथ संपादन भी किया।1933-1934 में जागरण, साप्ताहिक पत्र का संपादन किया तो 1930-1936 तक मासिक हंस का का, जनता के हित से बंधी पत्रिका के सर पर ब्रिटिश हुकुमत की तलवार लटकी जरूर वो विरोध करने में डरे नही  और कोपभाजन का शिकार होने पर भी प्रतिरोध करने पर पीछे नहीं हटे।'
दिलेर और दमदार व्यक्तित्व वाले राजा-महाराजाओं का अभिमान पस्त होने के कारण रियासतें अंग्रेजी हुकूमत की गुलाम थी।कथाशिल्पी प्रेमचंद जी एक तरफ महात्मा गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करते वही दूसरी ओर अंग्रेजों के अन्याय,अत्याचार, नृशंसता पर प्रतिवाद भी करते।संपादकीय में समाज सुधार, राष्ट्रीय चेतना, अंग्रेजों की दासता से मुक्ति आंदोलन से जनता को जाग्रत करते।ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अनवरत संघर्ष करते हुये दमन की सीमा, स्वराज रहेगा, काले कानूनों का व्यवहार, शक्कार की एक्साईज ड्यूटी, कोढ़ पर खाज जैसे वर्णन पर टिप्पणियां लिखी और स्वराज और साम्राज्यवादी शोषण पर उनका चिन्तन राष्ट्रीय चिन्तन था।उन्होने आगाह किया था कि जिस दिन से भारतीय बाजार में विलायती मिल भर गया,भारत का गौरव उसी दिन लुट गया।
फूट डालो शासन करो की ब्रिटिश सरकार की नीति हिन्दु-मुस्लिम सौहार्दता नही चाहती थी।इस कूट नीति को विफल करने और लोगों को दोगली शासन के प्रति जागरूक करने पत्रकारिता में एक नई शैली से मार्ग प्रशस्त कर सामाजिक कुरीतियों की जंजीरों को तोड़ने में कलम चलाई।लोगों की प्रेमभाव की डगर में सौहार्दथा के फूल खिलाकर सुख-दुख की हवाओं से समस्या रूपी कांटों को निकालने के नव आयाम स्थापित किए।ब्रिटिश सरकार के कानूनन्यू इंडिया प्रेम आर्डिनेस ,1930 पास होने पर इस दमनकारी किनून के विरोध में प्रेमचंद जी ने आवाज उठाई।इसके फलस्वरूप हंस पत्रिका बंद हो जाने की कीमत चुकानी पड़ी।प्रेमचंद जी की टिप्पणी विरोध में थी….'अब ना कानून की जरूरत हैं, काउंसिले और असेंबलियां सब व्यर्थ, अदालतें और महकमे सब फिजूल… डंडा क्या नहीं कर सकता,वह अजेय हैं, सर्वशक्तिमान है। 
प्रेमचंद जी तटस्थ संपादकीयता पर जैनेन्द्र जी ने ममताहीन सद्भावना कहा।रूढ़ियों को तोड़ने पर ही क्रांति की जंजीरे जुड़ेगी…सच कहने और सच लिखने पर सब सुविधाएं छोड़नी पड़ती हैं। पूंजी के प्रभुत्व को त्यागने पर ही सबल सशक्त लेखनी में सिद्धांतों की कुर्बानी करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।प्रेमचंद चंद जी की पत्रकारिता में  बुनियादी सवालों से जुड़ी, आदर्श मानदंड,जज्बाती भावनाएं, राष्ट्रवादी आंदोलनों के विचारो का प्रतिनिधि एवं जनमत निर्माण में उनके विचार प्रेमचंद जी के एक लंबे अर्से से चले आ रहे विचारों केवमंथन का परिणाम है। आपने कितनी भी आर्थिक कठिनाई को झेला पर आपकी पत्रकारिता निष्कलंक हैं हंस पत्रिका बंद हो जाने पर उसे साहित्य परिषद के हवाले किया पर जब साहित्य परिषद ने उसे सिर्फ पकास रूपये के लालच में सस्ते साहित्य को बेच दिया ।इस पर दुखित प्रेमचंद जी ने अपना दर्द बयां करते हुये लिखा जिसमें उनकी पीड़ा स्पष्ट झलकती हैं, 'बनिया के साथ काम करने पर यह सिला मिला कि तुमने हंस से ज्यादा रूपया खर्च किया,इसके लिए दिलोजान से काम किया। बिल्कुल अकेले  वक्त और सेहत का मिलकर खून किया।इसका किसी को लिहाज नहीं।'
बहुमुखी प्रतिभा के धनी जिनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता हैं।विषमताओं और कटुताओं से भरा जीवन,मानव जीवन से जुड़ी आधारभूत महत्ता पर बल दिया पर जीवन के प्रति आस्था होते हुई भी विकट परिस्थितियों में ईश्वर के प्रति आस्था नही थी।सादा जीवन ,उच्च विचार सरलता,सौम्यता,सौजन्यता और उदारता की साक्षात की प्रतिमूर्ति ने गवई लिवास में संपूजीवन गुजारा।बाह्य आडंबर से कोसे दूर उनके दिल में गरीबों व पीड़ितों के प्रति  सहानुभूति का अथाह सागर था।अपने जीवन के अंतिम समय तक कलम चलाने वाले प्रेमचंद चंद जी  भारतीयों की सुप्त चेतना को अपने क्रान्तिकारी विचारो से स्वाधीनता की ज्वाला को प्रदीप्त करने वाले दीपक थे जिन्होंने अपनी कहानी कायाकल्प में कहा कि सूरज जलता भी हैं, रोशनी भी देता हैं। 

बबीता गुप्ता 

स्वरचित व अप्रकाशित हैं 

Views: 238

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2022 at 3:23pm

आ. बहन प्रतिभा जी, सादर अभिवादन। प्रेचन्द जी पर सारगर्भित लेख हुआ है। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service