दोस्ती यानि जिंदगी....जिंदगी की नींव, खुशी, ख्वाब हैं और ख्वाब की ताबीर भी...!दोस्ती वो ताकत होती हैं जो निराशा, हताशा, अवसाद के क्षणों में समझकर मानसिक शांति देता हैं।लेकिन यह भी सच हैं कि बुनियादी संस्कार व जीवन जीने का सलीका सिखाने वाले परिवार के अस्तित्व के बिना कल्पना नही की जा सकती।उन्मुक्त संसार में उम्मीदों की किरणें बिखेरने वाली दोस्ती और इच्छाओं को सम्मान देने वाले परिवार के मध्यस्थ महीन बाल बराबर अंतर होते हुये भी हर रिश्ते के अपने-अपने रंग होते हैं।
प्यार, स्नेह, सादगी, आत्मीयता की प्रतीक दोस्ती में समाहित आपकी आंतरिक सुंदरता को समझती हैं, आपको वैसा ही बनाती हैं जैसा आप चाहते हों। आप जैसे हो, वैसा ही स्वीकारती हैं.....आपके बीते कल को समझती हैं।
सच हैं,जहां अपने अध्यापनकाल के एक पढ़ाव में साथीगण सभी आदरणीय उम्र के थे पर सभी ने मुझे सच्चे सलाहकार बनकर तो कभी दोस्त बनकर मेरे गुणों को सराहा तो अवगुणों की ओर इंगित कर उनका परिमार्जन किया। बेटी की तरह ध्यान रखते हुये कभी जिम्मेदारियों से उपेक्षित नही होने दिया। सब कुछ जानते हुये भी बिना किसी मतभेद के सादगी और सहानुभूति व आत्मीयता से जरूरतों को पूर्ण करने में वैचारिगी,दयालुता दिखाकर मनोबल नहीं गिरने दिया।सामाजिकता का पाठ सीखने के साथ जिंदगी के वास्तविक मायने समझे।
वहीं अध्यापनकाल के दूसरे पढ़ाव में आदरणीय के साथ हमउम्र साथीगण मिलें। इस दौर में जीवन की खुशी, जमीन का खजाना, मनुष्य के रूप में फरिश्ता....दोस्ती का भाव गूंगे के गुड़ जैसा एहसास कराया।दिल की गहराइयों को छू गई। रूह तक एहसास कराने वाली ये दोस्ती आईने की तरह पारदर्शी हैं.....जिसमें निःस्वार्थता का उदार भाव होने के कारण बिना लेन-देन के स्वार्थ से परे।विकट परिस्थितियों में आपसी वैचारिक मतभेद और गिले-शिकवे दरकिनार कर दुःख में राहत, हताश में हौंसला, कठिनाई में पथप्रदर्शक बन समस्या का सतर्कता से समाधान करने में स्वनिर्णय लेने में निर्णायक भूमिका निर्वहन की।प्रतीक के रूप में मानी जाने वाली ये अनमोल दोस्ती ही तो हैं जिसे पाना सच्चे प्रेम से ज्यादा दुर्लभ होती हैं।
जीवन को प्रकाशवान बनाकर धनवान बनाती दोस्ती बेशकीमती और शुभचिंतक तोहफा ही तो कहेंगे, जिसे एक्सप्लेन करना मुश्किल होता हैं। एक-दूसरे से बंधे होने पर भी एक-दूसरे की आजादी पर कभी हस्तक्षेप नही करते। जीवन की खुशी, जमीन का खजाना मनुष्य के रूप में फरिश्ता दोस्ती...दास्तान सहेजने वाली निःशब्द.....पारस्परिक विश्वास और समझ के कारण गहरी होती खूबसूरत दोस्ती का सफर ख़ुशबुओं से भरा होता हैं। दोस्ती के सरगम में मानसिक,सामाजिक और शारीरिक सेहत के तार होते हैं। जिसके छेड़ने से परवाह,आत्मीयता,मनुहार, भावनाओं, तकरार के सुर बहते हैं।
दिल की गहराई छूती दोस्ती जीवन के गुजरते पढ़ावों में आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती गई।और दोस्ती का बना खूबसूरत गुलदस्ता अपनी महक से जीवंत करता गया। रूह तक एहसास करने वाली दोस्ती ही तो थी जो संकीर्ण बाधाओं को तोड़कर अटूट भावना से जुड़ी। कभी वक्त के मुहाने ठंडी पड़ी बचपन की दोस्ती को बेतार के तार ने फिर से जोड़ दिया। आत्मीयता की प्रतीक दोस्ती, बड़ी बहन की तरह....मधु दी की अनुरागमयी बातें मनोबल बढ़ाने वाली.... मेरी मिलने की इच्छा को .स्क्रीन से निकल प्रत्यक्ष सामने ....खुशी का ठिकाना नही था...मधु-सी मधुरता...। जिंदगी के लम्हों को यादगार बनाते दोस्ती की जीवंत डायरी के पन्नों को किसी लक्ष्मण रेखाके धागे से बंधा नहीं जा सकता। बिना लेन-देन के स्वार्थ से परे दोस्ती ही तो हैं जिसने दोस्ती कि सौहादर्यता को बढ़ाने कई किलोमीटर की दूरी को संकुचित कर दिया।
बिछड़ने पर भी भावनाओं के सुदर अदृश्य तार प्रत्यक्ष रूप से जुड़कर और सुदृढ़ बन गए। चंद मिनटों का मिलना लक्ष्मी दीदी चंद घंटों की मुलाक़ात सपरिवार वंदना दीदी से..... त्रिवेणी का संगम सुनीता दीदी,मीरा दीदी,कुसुम दीदी… मीलों का सफर संकुचित हो गया… अविस्मरणीय यादगारों को संजोता पल कुछ वक्त के लिए जैसे थम-सा गया हो।दोस्ती का कद ऊंचा करते दोस्ती दुनिया बन जाती हैं।
हर समस्या का समाधान करने वाला प्रेम, विश्वास और भरोसे पर खरा उतरने वाला परिवार व्यक्तित्व को गढ़ता हैं तो दोस्ती व्यक्तित्व को निखारकर आकार देती हैं।अशांत जीवन की उलझनें सच्चे दोस्तों ने ही सुलझाई।संस्कार व समाजिकता सिखाने वाले परिवार ने पहचान दिलाई तो वही दोस्ती ने बिना किसी आडंबर के अतीत को समझते हुये जीने का अंदाज सिखाकर जीने की वजह दी।
फिर चाहे बालपन के दोस्त हो या जिंदगी के नए मोड़ पर हाथ थामने वाली सखियाँ, जिंदगी के रेखाओं का केनवास पर परिचय करवाने वाली कलाकार दोस्त या फिर केनवास पर चित्रात्मक भावों को पन्नों पर कलमबद्ध करने को प्रेरित करने वाली साहित्यिक अग्रजा जैसी दोस्त.......।उनकी बातों में झलकता अथाह विश्वास और प्यार......संकीर्ण बाधाओं को तोड़ती अटूट भावना से जुड़ी दोस्ती ही तो थी जिसने दोस्ती की सौहादर्ता को बढ़ाने में मीलों के सफर को संकुचित कर उन तारीखों को अविस्मरणीय बना दिया।जीवन के उपवन में पारस्परिक समझ और विश्वास से खिले फूलों की महक ने दोस्ती को जीवंत कर दिया।
सही हैं, संस्कार और दोस्ती जीवन के बहुमूल्य खजाने में से ऐसे शुभचिंतक व अनमोल रत्न ही तो हैं जिसने आत्मबल और आत्मसम्मान बढ़ाकर जीवन को प्रकाशवान बनाकर ना केवल जीने की वजह दी बल्कि जीने का अंदाज सिखाया।
स्वरचित व अप्रकाशित हैं
बबीता गुप्ता
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online