गज़ल
221 2121 1221 212
उम्मीद अब नहीं कोई वो दीदावर मिले
बहतर खुुदा कसम वही चारागर मिले ( मतला )
लगता नहीं है दिल कोई तो हमसफर मिले
अब लौट आ कि हम सनम सारी उमर मिले
अनजान तुम नहीं हो कि मिलते नहीं कभी
कुछ कर सको तो तुम करो मुझको दर मिले
उलझन भरी हैं रातें बड़ी बेहिसी वो दिन
हो दोस्त कोई अपना सही रहगुज़र मिले
दिन- रात हो गये बड़े मुश्किल भी बढ़ गयीं
वापस चले तुम्हीं सनम आओ सहर मिले
आज़ाद हम ज़़रूर हुये खुश नहीं अभी
हो खुशनुमा डगर कि शामो-सहर मिले
लगता नहीं है दिल कोई तो हमसफर मिले
अब लौट आ सनम अभी सब कुछ महर मिले
दो फाड़ दर हुआ ही था अनजान हो गये
बदला मिजाज़ भाई का हम क़मनज़र मिले
चेतन नज़र बदल गई रिश्ते मुहाल हैं
ईमाँ -ज़़मीर गुम गए अ्पने न घर मिले
मौलिक एवम् अप्रकाशित
प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'
-
Comment
कृपया मतले के सानी मिसरे को कुछ यूँ पढ़ें, " बहतर ख़ुदा क़सम वही तो चारागर मिले", धन्यवाद !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online