कितना कठिन था बचपन में गिनती पूरी रट जाना
अंकों के पहाड़ो को अटके बिन पूरा कह पाना
जोड़, घटाव, गुणा भाग के भँवर में जैसे बह जाना
किसी गहरे सागर के चक्रवात में फँस कर रह जाना
बंद कोष्ठकों के अंदर खुदको जकड़ा सा पाना
चिन्हों और संकेतों के भूल-भुलैया में खो जाना
वेग, दूरी, समय, आकार, जाने कितने आयाम रहे
रावण के दस सिर के जैसे इसके दस विभाग रहे
मूलधन और ब्याज दर में ना जाने कैसा रिश्ता था
क्षेत्रमिति और त्रिकोणमिती में अपना हाल तो खस्ता था
जैसे जैसे कक्षा लाँघें इसका कद भी बढ़ता जाता
नए नए सवालों में फिर अपना दिमाग भी खप जाता
बीजगणित का हाल ना पूछो अपने मन का मौजी था
जो फॉर्मूला समझ गए हम दूसरे में ना टिकता था
एक बेचारी ज्यामिती थी जो दिल अपना बहलाती थी
प्रमेय और उपमेय के सहारे नंबर हमें दिलाती थी
पहले सिर्फ ये एक विषय था एक हीं किताब में दिखता था
आगे चल कर खा गया सबको हर विषय में मिलता था
लेकिन अब जाकर हमने जाना क्यों इसको विज्ञान है माना
बिना इसके इस जीवन में असंभव है कुछ भी पाना
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी,
सहर्ष धन्यवाद।
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