For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई रोए, दुःख में हो बेहाल
असहाय, असुरक्षित, अभावग्रस्त
टोटा संगी-साथी, हो कती कंगाल
अत्याचार, अव्यवस्था से त्रस्त
किसी को क्या फर्क पड़ता है ।


यहां-वहां घूमे, दुःख के आंसू पीए
गिड़गिड़ाए, झुके, करे चापलूसी
हर रोज, मर-मरकर फिर जीए
सालों की प्रतीक्षा, मिली न कोई खुशी
नहीं प्रफुल्लता, छाई बस जड़ता है।


हो ना कोई भी जरूरत पूरी
जी-तोड़ मेहनत करता दिन-रात
की हुई हर एक इच्छा अधूरी
हर अरमान टूटता, रहता अकुलात
चिंता मं हर दिन जाता सड़ता है ।


आंसू बहते जब-तब, कर्म-व्यवस्था असफल
कोई भी मदद को न आए आगे
हताशा, निराशा, कुंठा हर पल
कमरतोड़ मेहनत करके बने हैं अभागे
सरकारी कानून भी बस इन्हें ही जकड़ता है ।


कर्म, पुरुषार्थ, भाग्य सब पाखंड है
कपट करके धनी भोगता वैभव
ईमानदारी करने का मिलता दंड है
करूणा, सेवा में लुटाया सर्वस्व
पर धार्मिक हर अवसर पर अकड़ता है ।


धंसी भीतर को प्रतीक्षारत आंखें
सब कुछ दिखता बस अंधकारमय
हक मांगों तो मिलती है सलाखें
अमीरों को नहीं कोई कानून का भय
झूठा प्रेम धर्मगुरुओं को उमड़ता है ।


हड्डियों में धंसा पेट, चाहता कुछ कहना
पूरे चेहरे पर मुर्दानी का राज
भूखों मर के सीख लिया है रहना
जैसे पहले बर्बाद था, वैसे ही हूं आज
पसीने की जगह खून निचुड़ता है ।


मरना पड़े, यदि न रोऊं
हल्का हो जाता हूं रो-रोकर
घर वालों का दोषी होऊं
खेत बिगाड़ा बस, मैंने बो-बोकर
विनम्रता भी मेरी अक्खड़ता है ।


कड़ी मेहनत, बन गया अपराध
वैभव लूट रहे यहां पर निठल्ले
सफल होता बस एकाध
असफल कर्मयोगी, कुछ पड़ता न पल्ले
विजय अधर्म की, व्यर्थ में लड़ता है ।


धर्मगुरु, राजनेता, अभिनेता
ढोंगी, पाखंडी, अवसरवादी
इनसे कोई हिसाब क्यों नहीं लेता
लूट-खसोट, चोरी करते बर्बादी
छीना यौवन, छीनी अल्हड़ता ।


मेहनत को आज मिल रहा दंड है
पड़ा है इनका यहां पर अकाल
बेईमानी, लूटनीति का बहुमत प्रचंड है
पूरे राष्ट्र पर छाया है यह जंजाल
असमय मरेगा, तू अब भी अड़ता है ।


जठराग्नि विवश करती है
शोषण, दासता, गाली, अपमान
धन संग आत्मा जाती मरती है
लोकतंत्र है, न डालो व्यवधान
और कुछ न जीवन, बस फक्कड़ता है।


धोखे, कपट, बहुत घाव खाए हैं
प्रेम, करूणा न किसी ने दिखाई
स्वार्थ में ही बस पास आए हैं
सबने ही बस आग लगाई
शीतल चंदन आग झड़ता है ।


कर्म-व्यवस्था नहीं किसी के हाथ में
अयोग्य भोगे; वैभव, अमीरी
यह तो है बस इनके ही साथ में
हम तो बने बस व्यर्थ शरीरी
सभ्य वही जो पर हड़ता है।


-आचार्य शीलक राम


कविता स्वलिखित व अप्रकाशित है।

Views: 190

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 10, 2022 at 5:26pm
बहुत सुन्दर रचना, आज के जीवन की झांकी दिखाती हुई, जय जय श्री राधे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service