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दोहे - मिट्टी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

जीवन दाता ने रचा, जीवन बड़ा अनन्त
मिट्टी से आरम्भ कर, मिट्टी से दे अन्त।१।
*
मिट्टी में उपजे फसल, भरे सभी का पेट
मिले इसी से जिन्दगी, मिट्टी को मत मेट।२।
*
मिट्टी बढ़कर स्वर्ण से, सदा लगाओ भाल
केवल मिट्टी ही यहाँ , सब को सकती पाल।३।
*
जन्म, ब्याह, पूजा, मरण, कर मिट्टी की बात
कहते फिर भी लोग नित, घट मिट्टी की जात।४।
*
मिट्टी को घट बोलकर, रखते स्वर्ण सँभाल
पर मिट्टी को ही चलें, जग में चाल कुचाल।५।
*
करते पंछी पेड़ सब, मिट्टी का यशगान
स्वर्ग छोड़कर ही तभी, आते भू भगवान।६।
*
मिट्टी तो अनमोल है, मत कह इस को धूल। 
कणकण इस का ही बने, हर जीवन का मूल।७।
*
समझ किसान कुम्हार ने, इस मिट्टी का मोल
लोटपोट इस में रहे, जी भर किया किलोल।८।
*
मिट्टी जन को जब लगे, जीवन का आधार
देशभक्ति के भाव को, तभी मिले अभिसार।९।
*
मिट्टी  की  उपयोगिता, समझे  मानव  चाह
लड़ता जीवन भर तभी, इस के लिए अथाह।१०।
*
कहते फिरते जो सदा, इस मिट्टी को हीन
दो मुट्ठी गर माँग लो, तो बन जाते दीन।११।
*
मिट्टी सब को दे सदा, देश प्रेम की चाह।
मिट्टी से मत बैर कर, मिट्टी अन्तिम राह।१२।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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