For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जॉन तुम जीवन हो

तुमको पढ़ा तुमको जाना तो ये समझ में आया है

कितनी बेकरारी को समेट कर तूने कोई एक शेर बनाया है

 

रईसी ऐसी की बस इशारों में मुआ हर काम हो जाए

फकीरी ऐसी की जो सब पाकर भी बेइंतजाम हो जाए

 

हमने सुने है किस्से तेरी बेरुखी की ज़िंदगी से

शोहरत पाकर भी कोई कैसे तुझसा बेनाम हो जाए

 

लिखा जो तूने कहा जो तूने कोई ना जान सका

तू सभी का है अभी पर तब तुझे कोई ना पहचान सका

 

आज नज़्में तेरी दासतां बताती है

कैसे गुजरी तेरी ज़िंदगी बताती है

 

लोग कहते है तुझे कद्र खुद की थी हीं नहीं

काश एक दिन मेरा तुझसा गुज़र जाए कभी

 

था सभी कुछ पास तेरे फिर भी एक रंज था

दौलत, शोहरत तालिम सब थी फिर भी जैसे कोई तंज़ था

 

तू तेरा था मगर खुद का कभी हुआ हीं नहीं

तेरी खुदी में भी बेखुदी का जैसे कोई अंश था

 

कितना डुबना होता है डूब जाने के लिए

घाव लगाना जरूरी है दर्द पाने के लिए

 

तुझे पढ़ा तब कहीं जाकर ये एहसास हुआ

कितना बर्बाद होना पड़ता है खुद को बनाने के लिए

 

कुछ लिखना कब आसान होता है

जागते है हम जब ये जहान सोता है

 

कलम चलती तो है बस मगर चलने के लिए

कोरे कागज को बस स्याह सा काला करने के लिए


खयाल वो नहीं जो आए और आकार चली जाए यूं ही

लफ्ज वो नहीं जो दिल में ना उतर जाए यूं ही

 

बड़ा मुश्किल है मतलब के दो शेर लिख जाए कोई

वो मतलब ही क्या जो न सब के समझ मे आए यूं ही

 

तेरी ज़िंदगी से बेरुखी ये सीखा गयी

तेरे होकर भी ना होने का एहसास दिला गयी

 

कितनी बेसब्री रही होगी तेरे दिल में

जो तुझे अव्वल दर्जे का शायर बना गयी

 

सभी कुछ था मगर तुझे थी परवाह नहीं

जो नहीं पास रहा उसकी तुझे थी कोई चाह नहीं

 

हमने देखा है औरों को खुद पर हँसते हुए

मगर तुझमे औरों जैसी को इबाट नहीं

 

लोग अपनी तालिम का गुमान करते हैं

जो नहीं करते वो दौलत का नशा करते है

 

ठुकरा देना इन सबको अपनी लगी के लिए

अब भला कौन इस जहां में ऐसा करते हैं

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

Views: 91

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service