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अच्छा हो तुम पढ़ो ये ग़ज़ल दोस्त ध्यान से
मैंने कहा है इसको बड़े मान - कान से
हम राह में बढेंगे तो मंज़िल मिलेगी ही
मक़सद भी होगा पूरा जियें आन - बान से
हर शख़्स बदहवास अभी भागता शहर
हलकान ज़िन्दगी में है वो खान - पान से
अवसाद इस सदी की समस्या जनाब है
तनहाई मारती रही इनसान जान से
अनजान है ज़माना अभी शोध चाँद पर
आग़ाज भारती हुआ इस बार शान से
आदम को झोंकती अना विश्वयुद्ध में
य़ूक्रेन रूस लड़ रहे क़मबख़्त शान से
दुनिया है पागलों की क़यामत से जान लो
'चेतन' न विश्वयुद्ध कभी हो मचान से
प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'
मौलिक व अप्रकाशित
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