मोरा साजन छूटो जाय
सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..
पपीहा करत है पी हू पी हू
मोहे जोबन विरह हो जाय
सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!
कोयल बोलै कुूहू कुहू बागन में
मोरा सावन सूखौ जाय
सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!
नाचत मोर बदरिया बरसत है
मोरा आँगन बिसरौ जाय
सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..!
मरौ ददुरवा बूँद पी रह जाय
लो सोवत रहत साल भर वो तो
मो पै बिन पिया रह्यो न जाय
सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा...!
कि पड़त हिंडोला वृन्दावन है
कान्हा राधा रह्यौ झुलाय
सखी री मैं न जाऊँ पीहरवा...!
प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर कजरी हुई है। हार्दिक बधाई।
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