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महाराणा संग्राम सिंह

राजपूत राजाओं को संगठित करता

एक मेवाड़ का अद्भुत शासक था

थर-थर कांपते शत्रु जिससे, वह संग्राम सिंह महाराजा था॥

 

वीरता-उदारता का समावेश था जिसमें

सिसोदिया वंश का गौरव था

विस्तार किया जो साम्राज्य का, हिंद देश का रक्षक था॥

 

सौ लड़ाइयाँ लड़ी थी जिसने

खो आँख-हाथ-पैर को बैठा था

एक छत्र के नीचे लाया राजपूतों को, शक्तिशाली ऐसा उत्तर भारत का राजा था॥

 

सतलुज से लेकर नर्मदा तक

साम्राज्य जिसका फैला था

ग्वालियर से लेकर भरतपुर तक, परचम उसका लहराया था॥

 

हिंदुपत की उपाधि पाता

दो बार इब्राहिम लोदी को हराया था

महानायक था भारत का जो, राणा सांगा भी कहलाया था॥

 

जागीरदार जिसका मेदनीराय भी

महान चंदेरी का राजा था

द्वितीय महमूद खिलजी को क़ैद किया, राणा जज़िया कर भी हटवाया था॥

 

गुजरात-मालवा क्षेत्र भी जीते

जो लोधी सल्तनत के छक्के छुड़ाया था

जीता बयाना क़िला था मुगलों से, कोहराम खानवा युद्ध में मचाया था॥

 

कायल था बाबर भी जिनका

पहले पराजय राणा से पाया था

जीत की उम्मीद भी हार बैठा वो, नतीजा एक गोली से समर का बदला था॥

 

घायल अवस्था में बेहोश हुए राणा जी

उन्हें ओझल युद्ध से कर दिया था

गाज़ी बनकर लौटा बाबर, जो झंडा बुलंद जीत का कर गया था॥

 

क्रोधित हो गए हार से राणा जी

मना चित्तौड़ लौटने से कर दिया था

शिकार हो गए धोखेबाजों के, जो ज़हर उनको दे दिया था॥

स्वरचित व मौलिक रचना

फूल सिंह, दिल्ली 

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