दोहा सप्तक. . . .
बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।
अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।
बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।
एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।
पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।
जीवन को मत दीजिए, दागदार उपहार ।3।
रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।
दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।
वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।
रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में लोच।5।
नजरें दूषित हो गई , दूषित हुए विचार ।
वर्तमान सन्दर्भ में, शर्मिन्दा शृंगार ।6।
वृद्धों का सन्तान जब,रखती पूर्ण ख़याल ।
जीवन के हर क्षेत्र में , रहती वो खुशहाल ।7।
सुशील सरना / 6-2-24
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