दोहा पंचक. . . . .
महफिल में तनहा जले, खूब हुए बदनाम ।
गैरों को देती रही, साकी भर -भर जाम ।।
गज़ब हया की सुर्खियाँ, अलसाए अन्दाज़ ।
सुर्खी सारे कह गई, बीती शब के राज़ ।।
साथी है अब वेदना, विरही मन की यार ।
विस्मृत होता ही नहीं, वो अद्भुत संसार ।।
उसे भुलाने के सभी, निष्फल हुए प्रयास ।
मदन भाव उन्नत हुए, मन में मचली प्यास ।।
कोई पागल हो गया, किसी ने खोये होश ।
आशिक को घायल करे, मदमाती आगोश ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुशील सरना / 18-3-24
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