बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास
चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास
ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास
इस झूठे बाजार में, टूटी सब की आस
पल भर में मेला लगे, पल भर में वनवास
अभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खास
रहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पास
छोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रास
श्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसास
रंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सहृदय शुक्रिया आ धामी सर आपकी इस्लाह का दिल से शुक्र गुज़ार हूँ आपने बेहतरीन सुझाव दिये हैं आ मैं दुरुस्त करता हूँ
आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। दोहों का प्रयास अच्छा हुआ है। बधाई।
कुछ दोहों में मात्राएँ अधिक हैं। देखिएगा...
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बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास
चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास
ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास
इस झूठे बाजार में, टूटी सब की आस
रहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पास
छोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रास
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