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गीत... प्रतिभा खुद में वन्दनीय है... संजीव 'सलिल'

गीत...

प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...
संजीव 'सलिल'
**

प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...
*
प्रतिभा मेघा दीप्ति उजाला
शुभ या अशुभ नहीं होता है.
वैसा फल पाता है साधक-
जैसा बीज रहा बोता है.

शिव को भजते राम और
रावण दोनों पर भाव भिन्न है.
एक शिविर में नव जीवन है
दूजे का अस्तित्व छिन्न है.

शिवता हो या भाव-भक्ति हो
सबको अब तक प्रार्थनीय है.
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है.....
*
अन्न एक ही खाकर पलते
सुर नर असुर संत पशु-पक्षी.
कोई अशुभ का वाहक होता
नहीं किसी सा है शुभ-पक्षी.

हो अखंड या खंड किन्तु
राकेश तिमिर को हरता ही है.
पूनम और अमावस दोनों
संगिनीयों को वरता भी है



भू की उर्वरता-वत्सलता
'सलिल' सभी को अर्चनीय है.
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है.
*


कौन पुरातन और नया क्या?
क्या लाये थे?, साथ गया क्या?
राग-विराग सभी के अन्दर-
क्या बेशर्मी और हया क्या?

अतिभोगी ना अतिवैरागी.
सदा जले अंतर में आगी.
नाश और निर्माण संग हो-
बने विरागी ही अनुरागी.

प्रभु-अर्पित निष्काम भाव से
'सलिल'-साधना साधनीय है.
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है.
*

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on August 11, 2010 at 8:17am
धन्यवाद.

जब आशा का साथ मिले तो
चिंता 'सलिल' निराशा की क्यों?
उषा-निशा दोनों का स्वागत-
चिन्तन करें हताश का क्यों?

पाया-खोया, खोया-पाया
रीता कर अभिनंदनीय है...
Comment by asha pandey ojha on August 10, 2010 at 7:05pm
waah salil ji sir bahut khoob ye bhin bhin fool bhin bhin mahk se bhawon ki bagiya mhka rahe hain .. bahut sundar

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 3, 2010 at 11:51am
शिव को भजते राम और
रावण दोनों पर भाव भिन्न है.
एक शिविर में नव जीवन है
दूजे का अस्तित्व छिन्न है.

श्राध्येय आचार्य जी चरण वंदन, बहुत ही सुंदर रचना और ससक्त अभिव्यक्ति, बधाई हो इस प्रस्तुति के लिये,

कृपया ध्यान दे...

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