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हमसफर हूँ उम्मीद जगा दी उसने,
खुदा से तामील भी करा दी उसने...

मेरे एक शेर को भी ना दाद दी उसने,
मालूम हो के गजल बना दी उसने...

इतना गहरा आगोश मेरे यार तेरा,
ख्वाबों से मुलाकात करा दी उसने...

दामन है या के मैखाना-ए-जन्नत,
रूह को भी शराब पिला दी उसने...

अब तो मीरा बनी नाचती है रूह,
इश्क की वो धुन लगा दी उसने...

सर्द तासीर दिखाती वो मुलाकातें,
आग सी जहन में लगा दी उसने...

रखी मखमल में रूह उसने मेरी,
गर्म धूप भी ना पड़ने दी उसने...

खुदा का घर बना इश्क-ए-भरत,
इस कदर पाक मुहब्बत दी उसने...

भरत २०/७/२०१०

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Comment by asha pandey ojha on September 4, 2010 at 6:21pm
bahut umda gzal
अब तो मीरा बनी नाचती है रूह,
इश्क की वो धुन लगा दी उसने...

सर्द तासीर दिखाती वो मुलाकातें,
आग सी जहन में लगा दी उसने...
mashaallha kamal kiya hai aapne .. bahut khoob

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 16, 2010 at 9:36am
अच्छी ग़ज़ल लिखा है आपने, अंतिम के दो शे'रो पर ज़रा नजर डालना चाहेंगे, कुछ कमिया दृष्टिगोचर है, धन्यवाद, इस रचना पर,

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